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भाषण : गुजरात महाविद्यालयके विद्यार्थियोंके समक्ष


विद्यार्थी वर्गकी बनिस्बत आप अन्य वर्गोंसे कातनेके लिए क्यों नहीं कहते? विद्यार्थियोंसे किसलिए पढ़ाई बन्द करनेके लिए कहते हैं?

कातना पढ़ाई नहीं है, यह मानना हमारी पहली भूल है; बलिदान शिक्षा नहीं है, ऐसा मानना दूसरी भूल है। यदि सब लड़के कल समझ जायें कि शिक्षाका बलिदान करना देश सेवा करना है तो मैं उसी क्षण यह समझँगा कि मेरा एक वर्षका काम पूरा हो गया।

चरखेसे जीवन-निर्वाह किस तरह हो सकेगा?

बुद्धिका उपयोग करनेवाला कमाई भी कर सकता है। लेकिन फिलहाल तो चरखेको मैं आपद्-धर्मके रूपमें स्वीकार करता हूँ। हिन्दुस्तानके सब विद्यार्थी अगर हर रोज चार घंटे सूत कातनेकी प्रतिज्ञा करें तो एक महीनेमें सूतके भाव कम हो जायें।

स्कूलोंमें ऐसा परिवर्तन करनेसे क्या असहयोगके आन्दोलनको धक्का नहीं पहुँचेगा?

नहीं। सरकारी स्कूलोंको छोड़नेवालोंको इस मान्यताके साथ स्कूलोंको छोड़ना होगा कि सरकारी शिक्षा मलिन वस्तु है। अगर वे इस विद्यापीठके लालचसे ही उन्हें छोड़ेंगे तो उन्हें वे कालेज मुबारक रहें। जिनका ध्येय विद्यार्थियोंको केवल अक्षर-ज्ञान देना ही हो वे अवश्य अलग कालेजोंकी स्थापना करें किन्तु अगर हमें ऐसा लगता हो कि हमारा यही कर्त्तव्य है और एक वर्षतक यह काम करेंगे तो देशको लाभ होगा तथा हम स्वराज्यके साधन बनेंगे तो हमें यह काम करना ही चाहिए।

क्या आप मानते हैं कि आपके इस नये विचारके लिए देशका वातावरण तैयार है? क्या आप एकदम लड़ाईके 'टर्किश बाथ' की अन्तिम कोठरीमें प्रजाको धकेल देना चाहते हैं?

मैं जानता हूँ कि वातावरण तैयार है, इसीसे तो मैं यह कहता हूँ। गत तीन महीनोंमें देशन बहुत प्रगति की है। वातावरण रेलवेकी गतिसे नहीं बल्कि जैसे बरफ गिरती है वैसे ज्यामितिकी पद्धतिसे तैयार हो रहा है। मैंने आठ वर्ष पहले लिखा था कि हिन्दुस्तानको यह रास्ता ग्रहण करना होगा। उस समय मैं जानता नहीं था कि जनवरी १९२१ की तेरह तारीखको मैं तुम लोगोंसे इसके बारेमें बात करूँगा।

देश-सेवा करनेसे पहले क्या कुटुम्बकी सेवा नहीं करनी चाहिए?

जरूर करनी चाहिए। लेकिन कुटुम्ब सेवा लोक सेवाकी विरोधी नहीं हो सकती। पहले अपनी सेवा, फिर कुटुम्ब सेवा, उसके बाद गाँव सेवा और अन्तमें देश-सेवा, मैं इस क्रमको मानता हूँ। लेकिन कोई भी सेवा जगत्के कल्याणके विरुद्ध नहीं होनी चाहिए। देशकी ऐसी दरिद्रावस्थाके समय कुटुम्ब सेवाके नामपर बनके विवाहमें बीस हजार रुपया खर्च नहीं किया जा सकता।

देशकी रक्षाके लिए पुलिसकी जरूरत पड़ेगी। आप चरखके बदले हमें कवायद सिखाकर उस कामके योग्य क्यों नहीं बनाते?

मैं तुम लोगोंको पुलिसका कार्य कैसे सिखा सकता हूँ? जहाँ भय हो वहाँ जाकर खड़े रहनेकी शक्ति आनी ही चाहिए। तुम क्या यह कहना चाहते हो कि चैनसे उच्च-शिक्षा प्राप्त करने के बाद ही तुम स्वराज्यकी पैरवी करोगे?