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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


स्वराज्यका क्या अर्थ है?

हमारे हाथमें सेना-विभागका अधिकार आये, भूमिकी आय और उसपर होतेवाले व्ययका अधिकार आये, महसूलकी व्यवस्था हमारे हाथमें आये और अदालतें आयें——इसका नाम स्वराज्य है। ऐसा स्वराज्य मिलनेका अर्थ यह हुआ कि हम सब तरहके अत्याचारोंको बन्द कर सकेंगे। किन्तु सूत कातकर आर्थिक स्वतन्त्रता आज ही प्राप्त की जा सकती है। चरखके द्वारा यह सहज है, राष्ट्र कदाचित् आज इस हेतुको करनेके लिए तैयार न हो।

आप बारम्बार 'लड़ाईकी स्थिति', 'लड़ाईकी स्थिति' कहा करते हैं तो क्या यह 'लड़ाई स्वयंसेवकोंकी सेना' तैयार किये बिना लड़ी जा सकेगी? विद्यार्थियोंको सैनिक शिक्षा भी दी ही जानी चाहिए। क्या फिलहाल चरखके बदले उसपर अधिक ध्यान देनेकी जरूरत नहीं है?

सैनिक शिक्षा तो बहुत कम समयमें दी जा सकती है और फिर सैनिक शिक्षाका क्या अर्थ है? बहादुरी। तो बहादुरी क्या पटा-बनेटी खेलनेसे आती है? शहरमें फिरसे दंगे-फसाद हों और लोग घरोंको आग लगाने लगें तो घटनास्थलपर तुरन्त दौड़कर बीच-बचाव करनेवाला व्यक्ति अगर यह कहे कि मुझे मारनेके बाद ही तुम घर जला सकोगे तो वह व्यक्ति ही सच्चा वीर है। उस समय क्या आदेश जारी किये जा सकते हैं? 'मार्च' 'क्विक मार्च' सुननेतक क्या खड़े ही रहोगे? उस समय तो कवायद भी भूल जाओ। ऐसे अवसरपर तो मैं यही कह सकता कि तुम जितना तेज दौड़ सको उतना तेज दौड़कर एक जगहपर पहुँचो। अगर ऐसा प्रसंग आये तो मैं किसीको भी साथ लिये बिना——जूता पहनता होऊँ तो उसे भी छोड़कर——दौडूँ और जाकर भस्म हो जाऊँ। मैं यदि ऐसा न करूँ तो कहना कि गांधीकी बड़ी-बड़ी बातें झूठ थीं।

अगर सरकार हमारी सब माँगोंको मान ले और सिर्फ खिलाफतकी माँगको पूरा न करे तो हमें लड़ाई चालू रखनी चाहिए न?

जरूर, इस्लामकी रक्षा करते हुए मैं हिन्दू धर्मकी रक्षा करनेकी तालीम ले रहा हूँ, ऐसा मैंने अनेक बार कहा है। इस्लामको बचानेकी बातमें ही गो-रक्षाकी बात समाई हुई है। और जबतक हिन्दुस्तानमें एक भी गायकी हत्या की जाती है तबतक मेरे मांस, स्नायु और रुविरका पानी बन रहा है। मैं गो-रक्षा करने की तालीम ले रहा हूँ, तपश्चर्या कर रहा हूँ, अनेक विभूतियोंको प्राप्त कर रहा हूँ और गो-रक्षाके इस मन्त्रको जपते-जपते ही मैं मरूँगा।

चरखेका ध्यान करने मात्रसे हमारी वर्तमान शिक्षा समाप्त हो जायेगी, क्या आप ऐसा नहीं मानते?

चरखेकी प्रवृत्ति द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करनेके बाद ही हम अक्षर-ज्ञानके योग्य होंगे। अतएव चरखेकी इस प्रवृत्तिके द्वारा हमारी वर्तमान शिक्षाका विकास ही होगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०–१–१९२१