११७. तार : मौलाना अब्दुल बारीको[१]
१५ जनवरी, १९२१
मेरे नाम आपका तार शौकत अलीने पता बदलकर यहाँ भेजा। शान्ति स्थापनाके निमित्त आप जरूर बीचमें पड़ें।
[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९९१, पृष्ठ ७२
११८. यादवडकर पटवर्धन
कुछ ही महीनोंकी अवधिमें मैं अपने दो साथियोंसे वंचित हो गया हूँ। दोनों ईश्वरभक्त थे। दोनों कौमके सेवक थे, किन्तु उनकी सेवा अदृश्य होती थी। एक थे ब्रजलाल भीमजी[२]; बालकोंका एक कलश कुएँमें गिर गया था, वे उसे निकालनेके लिए कुएँमें घुसे और जब रस्सी पकड़कर निकल रहे थे तभी चढ़ते-चढ़ते थक गये, अतः फिसलकर गिर पड़े और इस तरह प्राण त्यागे।
दूसरे भाई पटवर्धनको ज्वर आता था। वे 'यंग इंडिया' के काममें मदद करते[३] और अपनी जीविका आप चलाते थे। इस बीच वे बीमार पड़ गये और स्वस्थ होनेके लिए अपने भाईके पास अमरावती चले गये। वे यह मानकर कि अब स्वस्थ हो गये हैं, नागपुर कांग्रेस अधिवेशनमें भाग लेने आये और वहाँ फिर बीमार पड़ गये। इस बारके बुखारने उनके प्राण ही ले लिये। उस समय उनके पास निकटके सगे-सम्बन्धियों और दो तीन मित्रोंके अलावा और कोई न था। इस तरह पटवर्धन एकादशीके दिन परलोक सिधार गये।
उनके-जैसे अथवा ब्रजलाल-जैसे लोक-सेवक मैंने कम ही देखे हैं। उनकी भाषणोंद्वारा अथवा दूसरी किसी तरह आगे आकर काम करनेकी आदत नहीं थी; तथापि राष्ट्र तो ऐसे सेवकोंसे ही उन्नति करता है। पटवर्धनकी सत्यवादिता, निरभिमानिता और तन्मयताका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से बी॰ ए॰ एल एल॰ बी॰ की परीक्षा पास अवश्य की लेकिन कभी बकालत नहीं की। वे सन्