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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भिन्न हो, तो भी जब हमें उस सरकार द्वारा संचालित स्कूलोंको छोड़ देनेके लिए कहा जाता है जिसे हम, सही अथवा गलत, अपनी इच्छाके अनुरूप झुकाना अथवा समाप्त कर देना चाहते हैं, तो क्या यह बात [अरबोंकी अपेक्षा] हमारे मामलेमें अधिक औचित्यपूर्ण नहीं है?

जबतक राष्ट्रका कमसे-कम एक वर्ग भी स्वराज्यके लिए कार्य करने और आत्मबलिदान करनेके लिए तैयार नहीं होता तबतक हम स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते। सरकार मौखिक तर्कोंके आगे नहीं झुकेगी; वीरतापूर्ण और सच्चे कार्योंका ही वह आदर कर सकती है।

सरकार तलवारकी बहादुरीको तो समझती है। उसने इस बातकी पूरी तैयारी कर ली है कि यदि हम शस्त्रबलका प्रयोग करें तो उसका बाल भी बाँका न हो सकेगा। सरकारमें कितने ही लोग हैं जो हमारे हिंसा करनेपर खुश होंगे। हिंसाका सामना करने और उसे कुचल देनेकी कलामें उससे पार नहीं पाया जा सकता। इसलिए हम उसकी हिंसा कर सकनेकी शक्तिको अहिंसा द्वारा व्यर्थ करना चाहते हैं। जिसके प्रति हिंसा की जाती है अगर उसपर उसकी कोई प्रतिक्रिया होना बन्द हो जाये तो हिंसा अपने आप मर जाती है। अहिंसा असहयोगकी इमारतकी आधार-शिला है। अतएव मुझे उम्मीद है कि आप उन लोगोंके प्रति उतावलेपन अथवा आवेशसे काम न लेंगे जो आपके विचारोंसे सहमत न हों। असहिष्णुता हिंसाका एक प्रकार है और इसलिए हमारे सिद्धान्तके विरुद्ध है। अहिंसामय असहयोग स्वाधीनताका पदार्थ-पाठ है। जिस क्षण यह निश्चित हो जायेगा कि बड़ीसे-बड़ी उत्तेजनाके बावजूद हम अहिंसापर दृढ़ रहेंगे उसी क्षण हमें अपने लक्ष्यकी प्राप्ति हो जायेगी, क्योंकि यही वह क्षण होगा जब हम पूर्ण असहयोग कर सकेंगे।

मैं आपसे कहूँगा कि अभी मैंने जो कल्पना आपके सामने रखी है उससे आप घबरायें नहीं। लोग अंकगणितके अनुसार आगे नहीं बढ़ते, ज्यामितिके अनुसार भी नहीं। राष्ट्रोंका पतन एक ही दिनमें होते देखा गया है, एक ही दिनमें उनका उत्त्थान होते भी देखा गया है। भारतके लिए इस बातको समझ सकना कुछ इतना कठिन नहीं कि तीस करोड़ व्यक्ति जिस क्षण अपने बलको पहचान लें, उसी क्षण इस बलका उपयोग किये बिना ही वे मुक्त हो जायेंगे? चूँकि हममें अबतक राष्ट्रीय चेतना नहीं आई है, इसलिए हमारे शासक हमें एक-दूसरेके विरुद्ध लड़ाते रहे हैं। जिस क्षण हम परस्पर लड़नेसे इनकार कर देंगे, उसी क्षण हम स्वयं अपनी किस्मतके मालिक बन जायेंगे, वे नहीं रहेंगे।

असहयोगकी योजनामें सबसे पहले उन संवेदनशील वर्गोंको लिया गया है जिनपर सरकार अपने जादूका अधिक असर डाल सकी है और जो जाने-अनजाने सरकारके जालमें जा फँसे हैं। उदाहरणके लिए, हम स्कूलोंमें पढ़नेवाले नौजवानोंके वर्गको ले सकते हैं।

हम यदि सोचें तो देखेंगे कि व्यक्तिगत रूपसे लोगोंको जो बलिदान करना होगा वह अत्यल्प है; क्योंकि सम्पूर्ण बलिदान तो हम इतने सारे लोगोंमें बँटा हुआ है। बलिदानमें आपका हिस्सा क्या होगा? यहीं न कि एक साल अथवा जबतक स्वराज्य