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तब विद्यार्थियोंको शिक्षण संस्थाओंमें से निकालनकी बात धर्म या अन्तरात्मापर आधारित न होकर शुद्ध रूपसे इष्टसिद्धिके सिद्धान्तपर आधारित होगी।

इष्टसिद्धि बदनाम शब्द है और मुझे इससे डर लगता है। आमतौर पर इष्टसिद्धिमें नैतिकताकी चिन्ता नहीं की जाती और हिंसाका सहारा लेनमें भी कोई एतराज नहीं होता। लेकिन लेखकने इसका उपयोग इसके मूल अर्थमें करके इसका दंश दूर कर दिया है। सो इस तरह कि वे नैतिक और शान्तिपूर्ण उपायोंका इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं। इसलिए उनकी बातसे मेरी कोई तकरार नहीं है, वह प्रशंसनीय है। मैंने असहयोगको धर्मके ही अर्थोंमें प्रस्तुत किया है, क्योंकि मैं राजनीतिमें उसी हदतक शामिल हूँ जिस हदतक उससे मेरे धर्मका, मेरी धार्मिकताका विकास होता है। पत्रलेखक महोदयने इसे राजनैतिक अर्थोंमें प्रस्तुत किया है। मैं निवेदन करूँगा कि जिस रूपमें उसे मैंने प्रस्तुत किया है, उस रूपमें उसमें गलतियोंकी कम गुंजाइश है। राजनैतिक कार्यक्रमकी तरह धार्मिक कार्यक्रममें भी सीढ़ियाँ तो रहती ही हैं। बुनियादी फर्क यह है कि जिस कार्यक्रमकी कल्पना धार्मिक भावनापर आधारित हो, उसमें दावपेंचकी, या उन चीजोंसे समझौतेकी गुंजाइश नहीं होती जो कुछ महत्त्व रखती हैं। हमारा मौजूदा असहयोग आन्दोलन एक बुरी सरकारको ठप्प करनेके लिए उतना नहीं है जितना यह दिखानेके लिए कि हम बुराईके खिलाफ हैं। इसलिए उसका उद्देश्य ध्वंस नहीं, निर्माण है। यह रोगके लक्षणोंका नहीं, उसके मूल कारणोंका इलाज है। नीचेके अनुच्छेदसे मेरा मतलब शायद, और भी साफ हो जायेगा।

"निष्क्रिय प्रतिरोध" (पैसिव रेजिस्टेंस)

सातुरसे एक सज्जन लिखते हैं:

निष्क्रिय प्रतिरोधी बहिष्कारको ठीक नहीं मानता, वह कभी भी सरकारको परेशानीमें नहीं डालता।" लेकिन असहयोगी सरकारको ठप कर देना चाहता है और उसका सारा कारोबार (कौंसिलों, मदद पानेवाले स्कूलों आदिके) बहिकारपर निर्भर करता है। क्या निष्क्रिय प्रतिरोध करनेवाला व्यक्ति असहयोगी हो सकता है? मैंने आपके ही वाक्यका उद्धरण आरम्भमें दिया है।

सातुरके पत्र-लेखकने मेरा जो वाक्य उद्धृत किया है, वह बिलकुल सही है। लेकिन मैंने बात जिस प्रसंगमें कही थी वह प्रसंग उन्होंने नहीं दिया। बहिष्कार शब्दका प्रयोग केवल उसके पारिभाषिक अर्थमें ही किया गया है——अर्थात् दण्ड देनेकी भावनासे प्रेरित होकर, विदेशी चीजोंसे भिन्न, केवल ब्रिटिश मालके बहिष्कारके अर्थमें। मेरा ऐसा खयाल है कि ब्रिटिश मालके बहिष्कारकी निरर्थकताको तो प्रायः सभी समझते हैं। लेकिन शुचिता लानेके खयालसे किया गया बहिष्कार न केवल सही, बल्कि जरूरी भी है। इस हिसाबसे कौंसिलों आदिका, जो आज एक बुरी ताकतका प्रतीक बन गई हैं, बहिष्कार अच्छी ही बात है। निष्क्रिय प्रतिरोध कोई सही और सटीक अर्थ देनेवाला शब्द-पद नहीं है। मुझे इसकी ठीक-ठीक परिभाषा देखनेको कभी नहीं मिली; इसलिए खुद मैंने इसकी परिभाषा करनेकी कोशिश की है। लेकिन