पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जहाँतक पत्रलेखकका सम्बन्ध है, मेरा इतना ही कहना काफी होगा कि असहयोग आंशिक रूपमें निष्किय प्रतिरोध है। दोनोंमें से कोई भी सरकारको परेशानी में नहीं डालता। लेकिन दोनोंमें से किसीकी भी कार्रवाइयोंका नतीजा सरकारके लिए परेशानी हो सकता है। दोनोंका लक्ष्य आन्तरिक शुद्धि और विकास ही है। जबर्दस्ती घुसनेवालेके खिलाफ जो अपना दरवाजा बन्द कर लेता है, क्या वह उसे परेशान करता है? या अगर कोई शराबी शराब पीना छोड़ दे और जिस शराबखाने का वह ग्राहक है उस शराबखानेसे शराब खरीदना बन्द कर दे तो उसका यह काम शराबकी दुकान मालिकको क्या परेशानीमें डालनेवाला कहा जायेगा?

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९–१–१९२१

 

१२१. स्वराज्यका गुर

कांग्रेसके प्रस्तावमें स्वदेशी और उसके लिए व्यापारियों द्वारा ज्यादासे- ज्यादा त्याग करनेके महत्वपर ठीक ही जोर दिया गया है।

पिछली डेढ़ शताब्दीसे देशका जो आर्थिक दोहन होता रहा है उसे राजी-खुशी बढ़ावा देकर या बर्दाश्त करते रहकर भारत कभी स्वतन्त्र नहीं हो सकता। विदेशी मालके बहिष्कारका ठीक-ठीक मतलब है विदेशी कपड़ेका बहिष्कार। विदेशी कपड़ा ही हमारे आर्थिक दोहनकी सबसे बड़ी मद है और हमने इसकी अनुमति दे रखी है। इस मदमें हम हर साल साठ करोड़ रुपया विदेशोंको दे देते हैं। अगर भारत इसे बन्द करनेकी कोशिशमें कामयाब हो गया तो अकेले इसी एक कामसे उसे स्वराज्य मिल सकता है।

विदेशी वस्त्र-उत्पादकोंके लोभको सन्तुष्ट करनेके ही लिए भारतको गुलाम बनाया गया। जब ईस्ट इंडिया कम्पनी यहाँ आई, उस समय हम अपनी जरूरतका सारा कपड़ा स्वदेशमें ही तैयार कर लेते थे और इसके सिवाय निर्यातके लिए भी काफी कपड़ा तैयार करते थे। कम्पनीके आनेके बाद यहाँ जो तरीके अपनाये गये, उनका वर्णन करनेकी यहाँ जरूरत नहीं, लेकिन उनका नतीजा यह अवश्य हुआ कि आज भारत कपड़ेकी अपनी जरूरत पूरी करनेके लिए हर तरहसे विदेशोंका आश्रित हो गया है।

लेकिन हमें किसीपर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अगर हम सब लोग काममें जुट जायें तो अपना सारा कपड़ा तैयार करनेकी क्षमता हमारे देशमें है। सौभाग्यसे भारतमें अब भी इतने बुनकर हैं कि वे इस क्षेत्रमें उत्पादनके बाद जो कमी रह जाती है उसकी पूर्ति कर सकते हैं। हमारी जरूरतका सारा कपड़ा अभी तो देशकी कपड़ामिलें बनाती नहीं हैं और तुरन्त बना भी नहीं सकतीं। पाठकोंको शायद यह पता नहीं होगा कि आज भी हमारी मिलोंकी बनिस्बत हमारे बुनकर ही ज्यादा कपड़ा