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स्वराज्यका गुर

बुनते हैं। ये मिलें पाँच करोड़ गज महीन सूत विदेशोंसे मँगाकर बुनती हैं, जब कि इतने समयमें वे मोटा देशी सूत चालीस करोड़ गज बुन सकती हैं। विदेशी कपड़के सफल बहिष्कारके लिए हमें अपने यहाँ सुतका उत्पादन बढ़ाना चाहिए। यह केवल हाथ-कताईके द्वारा ही हो सकता है।

इस तरहके बहिष्कारके लिए जरूरी है कि हमारे व्यापारीगण आयात बिलकुल बन्द कर दें और उनके पास जितना विदेशी कपड़ा है उसे घाटा खाकर भी यथासम्भव विदेशी ग्राहकोंके हाथ, जल्दीसे-जल्दी बेच दें। वे रुईका सट्टा बन्द कर दें और सारी रुई देशमें उपयोगके लिए यहीं रहने दें। उन्हें विदेशी रुईकी खरीददारी भी बन्द कर देनी चाहिए।

मिल मालिकोंको अपनी मिलें मुनाफेके लिए नहीं, राष्ट्रका न्यासी बनकर देशके हितके लिए चलानी चाहिए; और महीन सुतकी कताई बन्द करके सिर्फ घरेलू बाजारके लिए कपड़ा बुनना चाहिए।

गृहस्थोंको भी फैशन-सम्बन्धी अपने विचारोंमें परिवर्तन करना और कमसे-कम कुछ समयके लिए तो महीन कपड़ों का इस्तेमाल छोड़ ही देना चाहिए, क्योंकि ऐसे कपड़े हमेशा तन ढकनेको ही नहीं पहने जाते। हर गृहस्थको साफ और सफेद खद्दरमें कलात्मकता और सुन्दरता देखनेकी आदत डालनी चाहिए और उसके मुलायम खुरदरेपनकी सराहना करना सीखना चाहिए। जिस प्रकार कंजूस अपने धनका उपयोग बचा-बचाकर करता है, उसी प्रकार गृहस्थको अपने कपड़ोंका इस्तेमाल करना सीखना होगा।

पोशाकके बारेमें गृहस्थकी रुचिमें परिवर्तन हो जानेके बाद भी किसी-न-किसीको बुनकरोंके लिए सूत कातना ही होगा। अगर हर आदमी अपनी फुरसतके समय स्वान्तः सुखाय या पैसोंकी खातिर कताई करे तो यह बात बन सकती है।

हम आध्यात्मिक युद्धमें लगे हैं। जिस जमानेमें हम रह रहे हैं वह कोई साधारण जमाना नहीं है। असाधारण समयमें साधारण काम हमेशा बन्द कर दिये जाते हैं। और अगर हम एक सालके अन्दर स्वराज्य पा ही लेना चाहते हैं तो हमें दूसरे सब काम छोड़कर एक इसी उद्देश्यपर अपनी सारी ताकत और सारा ध्यान लगाना होगा। इसलिए मैं सारे हिन्दुस्तानके तमाम विद्यार्थियोंसे कहना चाहता हूँ कि वे एक सालके लिए अपनी सामान्य पढ़ाई-लिखाई बन्द कर दें और अपना सारा समय चरखेपर सूत कातनमें लगायें। उनके द्वारा मातृभूमिको यही सबसे बड़ी सेवा होगी, यही स्वराज्य हासिल करनेमें उनका सबसे बड़ा और स्वाभाविक योगदान होगा। पिछले महायुद्धमें हमारे शासकोंने हर कारखानेको गोले-गोली ढालनेका कारखाना बनानेकी कोशिश की थी। हमारे इस धर्मयुद्धमें, मेरा सुझाव है कि हर राष्ट्रीय स्कूल और कालेजको राष्ट्रके लिए सूतकी गुंडियाँ बनानेवाले कारखानेमें बदल लिया जाये। इस कामसे विद्यार्थियोंको नुकसान कुछ भी नहीं होगा; उलटे इस लोक और परलोक दोनोंमें सुख मिलेगा। भारतमें कपड़का अकाल है। इस कमीको दूर करनेमें मदद देना निश्चय ही बड़े पुण्यका काम है। अगर विदेशी सूतका इस्तेमाल पाप है तो उसका इस्तेमाल