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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
पवित्रताका पुंज है, मानवको कुकर्म-जनित दुःखकी आगमें जलते देखा तब वह उससे दूर नहीं रहा, बल्कि अपना स्वर्गासन छोड़कर उसकी सहायता करनेके लिए तथा उसे उसके पापोंके परिणामोंसे बचानेके लिए पृथ्वीपर अवतरित हुआ। परमपुनीत, अपापजन्मा ईसाने पापियोंके साथ काम करनेसे कभी इनकार नहीं किया। उन्हें स्वयं सभी बुराइयोंसे घृणा थी और जहाँ, जिसमें––तत्कालीन बड़ेसे-बड़े आदमियोंमें भी––उन्हें ये बुयाइयाँ दिखाई दीं, उन्होंने सर्वत्र इनकी तीव्र भर्त्सना की। लेकिन दूसरी ओर वे सभी लोगोंसे––फैरिसियोंसे[१] लेकर विदेशी सरकारके लिए कर वसूल करनेवाले घृणित तहसीलदारों और कुख्यात पापियोंतक से मुक्तभावसे मिलते रहे और उनके निकट सम्पर्कमें रहकर काम करते हुए, उन्होंने अपने बुद्धिमत्तापूर्ण उपदेशों और सुन्दर दृष्टान्तों द्वारा, उन्हें बुराईसे विमुख करके अच्छाईकी ओर उन्मुख करनेका प्रयत्न किया।
इन तथ्योंपर विचार करते हुए मैं इसी परिणामपर पहुँचा हूँ कि आज सभी सच्चे देशभक्तोंका यह स्पष्ट कर्त्तव्य है कि वे इस सरकारसे, जिसे अनुचित रूपसे राक्षसी और शैतानकी सरकार कहा गया है, अपने-आपको अलग न रखें, वरन् उससे सम्पर्क बनाये रखनेके लिए जो सम्भव हो सकता है सो उपाय करें (अर्थात् नई कौंसिलोंको प्रोत्साहन प्रदान करें) और उसे इस तरह उस मार्गकी ओर प्रवृत्त करनेका प्रयत्न करें, जिसे वे अधिक उचित मानते हैं। मैं आशा करता हूँ और ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि जिस तरह पिछले वर्ष आपने सत्याग्रहके सिलसिलेमें अपनी भूलें देख ली थीं, उसी तरह समय रहते आपकी आँखें खुलें और आप असहयोगसे मुँह मोड़कर सहयोगकी ओर प्रवृत्त हों।
आप मेरे इन चन्द शब्दोंका जैसा चाहें, उपयोग कर सकते हैं।

सस्नेह––

आपका,
जी॰ गिलिस्पी

राजकोट,
२०–११–१९२०

मैं इस पत्रको ज्योंका-त्यों छाप रहा हूँ। इसे मैं विशेष रूपसे इसलिए छाप रहा हूँ कि इससे प्रकट हो जाता है कि यद्यपि मैं वर्तमान शासन प्रणालीकी अनवरत निन्दा करता रहा हूँ, फिर भी मुझे रेवरेंड गिलिस्पी-जैसे अंग्रेजोंकी मैत्रीका सौभाग्य प्राप्त है। मैं जानता हूँ कि वे जो-कुछ कहते हैं उसमें पूरी ईमानदारीके साथ विश्वास करते हैं। वे मानते हैं कि मेरी मान्यताएँ और उद्देश्य सदाशयतापूर्ण हैं, तथापि हम दोनोंकी ईसाइयों और हिन्दुओंके धर्मग्रन्थोंकी व्याख्याएँ भी एक-दूसरेसे कोसों दूर

  1. यहूदी पुरोहित जो धर्मके बाहरी दिखावेमें विश्वास करते थे।