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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं भगवानसे यह प्रार्थना करता हूँ कि वह इस कार्यको हमारे लिए सहल और हलका बनाये, क्योंकि इसीसे हम धार्मिक और आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकेंगे।

[गजरातीसे]
नवजीवन, २३–१–१९२१

 

१२६. भाषण : अध्यापकोंकी सभा, नडियादमें[१]

१९ जनवरी, १९२१

अभीतक हम सरकारसे डरते थे; हमें हमेशा यह लगता था कि अगर सरकारकी मदद मिलनी बन्द हो जायेगी तो हमारा काम कैसे चलेगा? इसलिए हमें डर-डरकर चलना पड़ता था। इसी भयके कारण हम खुलकर बात भी नहीं कर सकते थे। आज हम देखते हैं कि हम सरकारकी मददके बिना काम चला सकते हैं और सरकार हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। हम झूठसे छुटकारा पा गये। अब हम जो बात महसूस करते हैं, कह सकते हैं। हमें सरकारसे कह देना चाहिए कि स्कूल हमारे हैं। तब वह हमें किस तरह प्रभावित करेगी? क्या वह सबको दण्ड दे सकती है अथवा कैद कर सकती है? लेकिन यह तो पहला परिणाम है, इसका सुपरिणाम देखना तो अभी बाकी है। उस सुपरिणामको प्राप्त करने के लिए शिक्षकों की मददकी जरूरत है। आप स्वराज्यकी लड़ाईमें अपना हिस्सा देने और त्याग करनेके लिए तैयार हो जायें। जब स्वराज्य मिलेगा तब आपकी पेन्शन भी चालू हो जायेगी। हम अपने अधिकारोंके लिए लड़ते हैं, यह बात हम सब लोग ज्ञानपूर्वक और साहसपूर्वक मानें और उसपर आचरण करें, इसीमें इस लड़ाईका रहस्य छिपा है। मैं चाहता हूँ कि आप सब लोग स्वराज्यके शिक्षक बनें और नगरपालिकाओंकी सहायता करें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३–१–१९२१

 
  1. महादेव देसाईके यात्रा विवरण उद्धृत। नडियादमें नगरपालिकाने निश्चय किया था कि वह सरकारसे कोई अनुदान नहीं लेगी। अब नगरपालिका और स्कूलोंके अध्यापकोंके सामने प्रश्न था कि उन्हें इन स्कूलोंमें बने रहना चाहिए या नहीं और अपना पेन्शनका अधिकार छोड़ना चाहिए या नहीं।