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१२७. भाषण : व्यापारियोंकी सभा, नडियादमें[१]

१९ जनवरी, १९२१

नडियादने अभीतक बहुत-कुछ करके दिखाया है। वह इसी तरह आगे भी करे और बढ़े, यही मेरी कामना है। यदि व्यापारी तैयार हो जाएँ तो वकीलोंकी भी कोई जरूरत न पड़े। हम व्यापारियोंके बलपर ही पंजाब और खिलाफतके सम्बन्धमें न्याय प्राप्त कर सकते हैं। यदि सात करोड़ मुसलमानों और तेईस करोड़ हिन्दुओंमें स्वदेशीकी भावना जाग्रत हो जाये तो हम आज ही स्वराज्य प्राप्त कर सकते हैं। इस दिशामें हमारा सबसे पहला कर्त्तव्य है कपड़ा तैयार करना। यदि हममें कपड़ा तैयार करनेकी शक्ति आ जायेगी तो सब वस्तुओंको तैयार करनेकी शक्ति हममें स्वयमेव आ जायेगी। इस शक्तिको खोनेमें हिन्दू व्यापारी और मुसलमान व्यापारी दोनों ही का दोष है। उनका लोभ नहीं छूटता। अगर वे अपने लोभको त्याग दें तो आप आज ही स्वराज्य और न्याय प्राप्त कर सकते हैं। आप जितना भी विदेशी कपड़ा हो उसको फेंक दें अथवा जला दें तो भी मुझे कलक नहीं होगी। आप चाहें तो इसे विदेशोंमें ले जाकर बेच दें लेकिन अपने देशमें न बेचें; और स्वदेशी कपड़ा तैयार करने लगें। नडियाद कपड़ेके लिए अहमदाबादपर निर्भर करता है, यह बात मुझे विचित्र जान पड़ती है। इसे भी स्वदेशी कहना मुश्किल है। जबतक छोटे-बड़े सभी सूत नहीं कातते तबतक स्वराज्य दूरकी मंजिल है। यदि हम सब चरखा चलायें तो सूत हमें मुफ्त मिलने लगे। तब जिस तरह हर कोई अपने लिए गेहूँको पिसवा सकता है उसी तरह सूतको भी बनवा सकेगा। इस तरह मिलके कपड़की कमी पूरी हो जायेगी। यदि आप विदेशी माल लेता और बेचना बन्द कर दें तो आप स्वराज्य प्राप्त कर सकते हैं।

दूसरी बात यह है कि आप रुपया दे सकते हैं। स्वराज्यके लिए अपना रुपया देकर आप साबित कर सकते हैं कि आप किसी घटिया धातुके बने हुए नहीं हैं, खरे सोनेके बने हुए हैं। आपका रुपया बादमें आपको ही वापस मिल जायेगा। इसका उपयोग आपके शहरके लिए ही किया जायेगा। इससे आपको आठ आने अथवा बारह आने [सैकड़का] व्याज नहीं मिल सकता; लेकिन शिक्षा मिलेगी, स्वतन्त्रता मिलेगी। इससे आप अपना कपड़ा स्वयं तैयार करने लगेंगे। मैं आपसे आग्रहपूर्वक कहता हूँ कि आप इन दोनों कामोंको करके नडियादकी प्रतिष्ठा बढ़ाएँ। नडियादकी प्रतिष्ठा बढ़ाकर आप समस्त गुजरात और हिन्दुस्तानकी प्रतिष्ठा बढ़ायेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३–१–१९२१

 
  1. महादेव देसाईके यात्रा विवरणसे उद्धृत।