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१२८. भाषण : वडतालकी सार्वजनिक सभामें

वडताल[१]
१९ जनवरी, १९२१

भाइयो और बहनो,

मुझे आप सब भाई-बहन इस बातके लिए क्षमा करेंगे कि मैं अशक्त होनेके कारण खड़े होकर भाषण नहीं दे सकूँगा। सच तो यह है कि जिस तरह मैं शरीरसे अशक्त हो गया हूँ उसी तरह मेरी आवाज भी अब पहले-जैसी नहीं है। फिर भी मैं ज्यादासे-ज्यादा लोगों तक अपनी आवाज़ पहुँचानेकी कोशिश करूँगा। इसके लिए आप सब लोगोंको शान्त रहना होगा; क्योंकि शान्ति बनी रही तो मुझे जो-कुछ कहना है वह काफी भाई-बहनोंके पल्ले पड़ सकेगा।

इस पवित्र स्थानपर आकर मुझे खुशी हो रही है। १९१५ से मेरी यह अभिलाषा रही है कि मैं इस पवित्र धामकी यात्रा करूँ। आज इस सौभाग्यका अवसर प्राप्त होनेके लिए मैं ईश्वरको धन्यवाद देता हूँ। इसके लिए मैं आप लोगोंका भी आभारी हूँ।

इस सभामें इतने साधुओंकी उपस्थिति एक बड़ी खुशीकी बात है। क्योंकि मेरा सन्देश सामान्य स्त्री-पुरुषोंके लिए ही नहीं, सबके लिए है——साधुओंके लिए खास तौरसे है। जब साधु-वर्ग यह समझेगा कि असहकार क्या है, हिन्दुस्तानकी जनता किसलिए असहकार कर रही है तब वे भी असहकारके मन्त्रका जाप किये बिना न रहेंगे क्योंकि तब वे यह समझ जायेंगे कि [असहकारके बिना] साधुताको भी कायम नहीं रखा जा सकता। असहकार हमारे धर्ममें कोई नवीन तत्त्व नहीं है। अनेक परेशानियोंमें पड़कर हम इसे भूल गये हैं अथवा कहिये, हमने उसके लक्षणोंको भुला दिया है। इसीसे इसपर अमल करनेमें हम कुछ ढील कर जाते हैं, शंकाएँ उठाते हैं और परिणाम होता है स्वराज्यकी स्थापनामें देरी। लेकिन असहकार कोई नया तत्त्व नहीं है, यह मैं जानता हूँ, और इसीलिए मैं कहता हूँ कि यदि जनता इसमें उत्साहके साथ भाग ले तो हम एक वर्षमें ही स्वराज्यकी स्थापना कर डालें। यह बात मैं चार महीनेसे बराबर कहता आ रहा हूँ; और फिर भी कहता जा रहा हूँ, इसका कारण जनतामें मेरी अटूट श्रद्धाका होना है।

कुछ भाई, जिन्हें सिर्फ राजनीतिमें ही दिलचस्पी है, शंका उठाते हैं, और कहते हैं कि यह प्रवृत्ति राजनीतिक नहीं है; कौन जाने यह कैसी होगी; अथवा कहते हैं, यह धार्मिक है। मैं कबूल करता हूँ कि यह धार्मिक है, इसमें शंकाकी तनिक भी गुंजाइश नहीं है। इसे मैंने आप लोगोंसे छिपाया भी नहीं है। जबतक साधु धर्मके

  1. गुजरातके खेड़ा जिलेका गाँव। स्वामिनारायण सम्प्रदायका तीर्थस्थान।