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भाषण : वड़तालकी सार्वजनिक सभामें

सिद्धान्तोंको नहीं समझते और राजनीतिक प्रश्नोंको सुलझानेमें उनका उपयोग नहीं करते तबतक मुश्किलें पैदा होती रहेंगी। जबतक साधु इसमें अपना पूरा योगदान नहीं देते तबतक उनमें भी पूर्ण साधुता नहीं आ सकती।

सरकारके अत्याचारमें हाथ न बँटाना, उसे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे सहायता न देना असहकार है। सब छात्रोंका कहना है कि राक्षसी प्रवृत्तिसे अलग रहो। जबतक राक्षसी प्रवृत्तिका प्रचलन हो तबतक यदि हम उस प्रवृत्तिवालोंकी मदद लेते हैं अथवा उन्हें मदद देते हैं तो हम उनके पापके भागीदार बनते हैं। तुलसीदासने कहा है कि असन्तोंका संग करना पाप है। 'गीता' में भी कहा गया है कि अगर हम राक्षसी प्रवृत्तिको स्वीकार करते हैं तो हम राक्षस बन जाते हैं।

[यहाँ वर्षा होने लगी और श्रोताओंमें थोड़ी हलचल होने लगी]

इतनी-सी बरसातसे अगर आप लोग भागेंगे तो असहकार क्या है उसके मर्मको कैसे समझ सकेंगे।

इतने थोड़े समयमें हमें एक पदार्थ-पाठ मिला है। उससे हम समझ सकते हैं कि हमें स्वराज मिलनेमें ढील क्यों हो रही है। इस संसारमें कलियुग बिन मौसमकी बरसातके समान है। जिस तरह बिन मौसमकी बरसातसे सुख नहीं मिलता उसी तरह कलियुगमें सुख सहज नहीं मिल सकता; और यदि हम ईश-भजन करना चाहते हों, सतयुगकी तरह रहना चाहते हों तो हमें कलियुगका भय छोड़ना चाहिए।

अभी हमने बिन मौसमकी बरसातकी वजहसे कितना समय नष्ट किया। यहाँ कितने सारे लोग लाठियाँ, छतरियाँ और धारिये[१] लिये बैठे हैं, उन्होंने गड़बड़ी मचा दी, छतरियाँ तन गईं और बहनें बेकार ही बिना किसी बातके लड़ पड़ीं। इससे यह प्रकट होता है कि अभी हम स्वराज्यके योग्य नहीं हुए हैं। स्वराज्यमें निर्भयताके गुणकी सबसे पहले आवश्यकता है। कष्टसे——दुःखसे डरकर जो धर्मपर आचरण करना छोड़ देता है वह स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकता। कायरको सुख नहीं मिल सकता। एक चोर अथवा लुटेरा उसे डरा-धमकाकर उससे कुछ भी करा ले सकता है; इसलिए कायर व्यक्ति धर्मका पालन नहीं कर पाता।

सभा प्रत्येक स्त्री-पुरुषका धर्म शान्ति बनाये रखना है। उसका धर्म है कि अगर कोई क्रोधमें पागल हो जाये और आक्रमण कर बैठे तो हम उसे सहन करें, उसपर बदलेमें आक्रमण न करें, गाली-गलौज न करें, शोर न मचायें। जो व्यक्ति बाहर हो उसे अन्दर आनेका प्रयत्न नहीं करना चाहिए। उसे चाहिए कि वह एकचित्त होकर [भाषण] सुने, उसपर विचार करे, उचित लगे तो उसपर आचरण करे और शेषका त्याग कर दे। हम अभी इतने व्यावहारिक धर्मका पालन करनेके योग्य नहीं हैं। बारिशकी दो-चार बूँदोंमें यदि हम शान्ति न रखें तो इतने धारियों और लाठियोंके बीच कोई व्यक्ति पागल बनकर उपद्रव मचाये तब तो हम भाग ही निकलेंगे। ऐसेमें हम स्त्रियोंकी लाज और अपने आत्मसम्मानकी रक्षा नहीं कर सकते। हमें अपने व्यक्तित्वपर विश्वास होना चाहिए। यहाँ कोई छड़ी और हँसिया लेकर मारने नहीं आया; लेकिन जैसे अनेक संकट

१९–१७

  1. लबें बेंटका हँसिया जो गुजरातमें एक हथियारकी तरह धारण किया जाता है।