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चरखेका धर्म

आज भी नहीं। इसका कारण मुझे सांसारिक भोग भोगने हैं, यह तो आप कदापि न समझें। मैं इनका त्याग करनेका प्रयत्न तो यथाशक्ति करता ही रहता हूँ; लेकिन मैंने अपने इसी प्रयत्नमें देखा है कि मैं भगवा पहननेके योग्य नहीं हूँ। मैं मन, वचन और कर्मसे सत्य, अहिंसा अथवा ब्रह्मचर्यका पालन करता हूँ, ऐसा मैं नहीं कह सकता। मेरे मनमें चाहे अनचाहे राग-द्वेष आते हैं और वासनाएँ उठती हैं——इन सबको मैं विचारपूर्वक रोकनेका प्रयत्न करता हूँ और इससे उनका स्थूलरूप दब जाता है। यदि मैं सम्पूर्ण रूपसे उनपर निग्रह कर सकूँ तो मैं आज ही समस्त विभूतियोंका स्वामी हो जाऊँ; मेरे नम्र होते हुए भी जगत मेरे चरणोंमें लोट जाये; कोई मेरी हँसी उड़ाने अथवा मेरा तिरस्कार करनेकी इच्छातक न करे।

लेकिन मैं आपसे आपका वेष उतरवानेके लिए नहीं आया हूँ। स्वामीनारायण सम्प्रदायमें मुझे जिस सरलताका अनुभव हुआ है, जिस प्रेमसे आपने मुझे यहाँ बुलाया है, उसके बदलेमें, मेरे मनमें जो भाव हैं अगर मैं उन्हें आपके सम्मुख व्यक्त न करूँ तो कहा जायेगा कि मैं अपने कर्त्तव्यसे च्युत हो गया। इसलिए मैं तो आपसे यही कहता हूँ कि आपने जो यह साधुओंका बाना पहन रखा है उसे आप साधुताके उचित गुणोंसे शोभित करें और इससे यशस्वी बनकर अपने सम्प्रदायको यशस्वी बनायें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३–१–१९२१

 

१३०. चरखेका धर्म

कांग्रेसने असहयोगके सम्बन्धमें जो प्रस्ताव[१] पास किया है उसके विविध अंगोंका वर्णन मैं पहले ही कर चुका हूँ। ये सब अंग महत्वपूर्ण हैं; लेकिन उनमें से एक अंग ऐसा है, जिसपर अगर जनता अमल करे तो मेरी दृढ़ मान्यता है कि उसी क्षण स्वराज्य प्राप्त हो जायेगा। यह अंग है चरखेका धर्म।

स्थान-स्थानपर मुझसे यह पूछा जाता है कि क्या स्वराज्य मिलनेपर अनाज और कपड़े के दाम घट जायेंगे? यह सवाल उचित है। हमें स्वराज्य मिले अथवा कोई अन्य वस्तु मिले; लेकिन अगर हम कपड़ेके लिए विदेशोंपर निर्भर रहेंगे तो कपड़े अथवा अनाजके दाम नहीं घटेंगे। इसलिए नहीं घटेंगे कि जबतक हम कपड़ेके मूल्यके रूपमें प्रतिवर्ष अपना साठ करोड़ रुपया हिन्दुस्तानसे बाहर भेजते रहेंगे तबतक हमारी भुखमरी दूर नहीं होगी और तबतक करोड़ों लोग कम अथवा अधिक प्रमाणमें उद्योगके बिना रहेंगे और उन्हें पर्याप्त अन्न अथवा वस्त्र नहीं मिलेंगे।

इसलिए हमारे सम्मुख अपनी जरूरतका कपड़ा तैयार करनेका प्रश्न खड़ा हुआ है। यदि हम अपनी जरूरत-भर कपड़ा तैयार कर लें तो हमारा साठ करोड़ रुपया बनने लगे। इतना ही नहीं, वह साराका-सारा गरीबोंके घर जाये। यह काम सिर्फ चरखेकी प्रवृत्ति बढ़ानेसे ही हो सकता है। हिन्दुस्तानमें पाँच करोड़ रतल सूत बाहर

  1. देखिए परिशिष्ट १ ।