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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

से आता है। यह सूत अस्सी और इससे अधिक नम्बरका होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर यही सुत मोटा हो तो चालीस करोड़ रत्तल हो जाये। जबतक इतना सूत हम नहीं कातते तबतक हमें हिन्दुस्तानको स्वतन्त्र करवानेकी बात भूल जानी चाहिए। इतना सुत किस तरह तैयार किया जाये?

हमारे कारखाने इतना सुत तैयार कर सकें यह सम्भव नहीं है। केवल चरखेसे ही यह काम हो सकता है। और सूतके उत्पादनको बढ़ानेका आसानसे-आसान रास्ता यही है कि हमारे स्कूलोंके विद्यार्थी इस कामको करने लग जायें। इन्हीं कारणोंको ध्यानमें रखते हुए विद्यापीठकी[१] नियामक सभाने यह सुझाव दिया है कि विद्यापीठसे सम्बन्धित शालाओंमें चरखा दाखिल किया जाये और सूत कतवाया जाये। यह बात मैं हमेशा मानता और कहता आया हूँ कि हमारे शिक्षणमें हमेशा ही यह त्रुटि रही है। मुझे उम्मीद है कि हमारे सब शिक्षक और विद्यार्थी इस सुझावका स्वागत करेंगे। हम इस सुझावके सम्बन्धमें अधिक विचार बादमें करेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०–१–१९२१

 

१३१. भाषण : विद्यार्थियोंकी सभामें[२]

२० जनवरी, १९२१

श्री गांधीने हिन्दीमें बोलते हुए कहा कि अगर आप स्वराज्य चाहते हैं तो आपको अपने कालेजों और स्कूलोंका परित्याग करना होगा। विद्यार्थियोंके रूपमें आपका क्या फर्ज है और आपको देशके लिए क्या करना है? कांग्रेसने आपको एक निश्चित नेतृत्व दिया है और क्या व्यावहारिक कदम उठाना है वह भी सुझा दिया है। उसने अहिंसामय असहयोगका रास्ता बताया है। आपका कर्त्तव्य है कि सरकारी अनुदानसे या सरकारी देखरेखमें चलनेवाले सभी स्कूल और कालेज छोड़ दें, और अपनी मातृभूमिके लिए रचनात्मक काम करें। कालेजोंका परित्याग करके आप सरकारकी नैतिक प्रतिष्ठाकी नींव हिला देंगे और अगर आप इसमें सफल हो गये तो भारतीयोंको स्वराज्य भी प्राप्त हो जायेगा। अपने उस लक्ष्यको, जिसके लिए आप सबको बलिदान करना होगा, प्राप्त करनेका एकमात्र रास्ता यही है। अगर आप एक-दो वर्षके लिए किसी शिक्षण-संस्थामें न जा पायें तो भी आप कुछ खोयेंगे नहीं। उद्देश्य प्राप्तिके लिए जिन चीजोंकी जरूरत है, वे हैं साहस और बलिदान। साहस और बलिदानका पाठ घरमें भी सीखा जा सकता है और स्कूलोंमें भी।

अपना लक्ष्य प्राप्त करनेके लिए आपसे जिन बातोंकी अपेक्षा की जाती है उनमें दो सबसे महत्वपूर्ण हैं। एक तो यह कि आप अपने देशका आर्थिक उत्थान करें।

  1. गुजरात विद्यापीठ।
  2. यह सभा स्वराज्य-सभा और नेशनल यूनियनके संयुक्त तत्वावधानमें बम्बईमें हुई थी; अध्यक्षता गांधीजीने की थी।