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१३३. लूट और चोरी

जोटाणासे[१] कुछ भाइयों और बहनोंने वहाँ होनेवाली लूटपाटसे जो त्रास फैला हुआ है उसके विषयमें बताया। मैंने सुना है, वैसी ही स्थिति खेड़ाके कुछ गाँवोंमें भी है। मैं वड़तालमें भी इसी कारणसे गया था। वहाँ धाराला ठाकोर लोगोंसे मैंने मुलाकात की और यह सब-कुछ सुननेके बाद मुझे लगा कि यह सवाल महत्वपूर्ण है। यह कोई नया प्रश्न नहीं है। ऐसी लूटपाट हमेशासे थोड़ी-बहुत चलती आई है। यह भी रोगादि जैसा उपद्रव है। किसी-किसी समय यह अधिक फूट निकलता है और कभी-कभी इसकी गति मन्द पड़ जाती है। आजतक जनताने यही माना है कि इस तरहकी लूटपाटको रोकना सरकारका ही काम है। इसमें सन्देह नहीं कि जनताकी रक्षा करना सरकारका कर्त्तव्य होता है। लेकिन जिस राष्ट्रकी जनता इस सम्बन्धमें सिर्फ सरकारपर ही निर्भर करती है वह स्वतन्त्र नहीं हो सकती। अगर इस असहयोग आन्दोलनके समय जनता सरकारी संरक्षणकी बात सोचेगी तो यह आत्मघात करनेके समान माना जायेगा।

सरकारी पक्षकी ओरसे तो हमेशा यही कहा जाता रहा है कि जनता अपनी रक्षा करनेको तैयार नहीं है, उसमें बाहरी हमलेसे अपना बचाव करनेकी हिम्मत नहीं है। थोड़ासा विचार करनेपर ही मालूम होगा कि इस बातमें कोई तथ्य नहीं है। जब यह सरकार नहीं थी तब भी हिन्दुस्तानमें अपने अस्तित्वको बनाये रखनेकी ताकत थी। यदि हिन्दुस्तानके लोगोंमें अपनी रक्षा करने की शक्ति न होती तो वे कबके नष्ट हो गये होते। हकीकत तो यह है कि हिन्दुस्तानके लोग चाहे कितने ही पतित क्यों न हों लेकिन वे आजतक अपनी सभ्यता और अपने अस्तित्वको बनाये रख सके हैं, जब कि रोम, मिस्र, यूनान और ईरान आदि साम्राज्य नष्ट हो गये हैं। प्राचीन मिस्र और अर्वाचीन मिस्र एक नहीं है। किन्तु प्राचीन भारत अधिकांशतया वैसा ही था जैसा आजका भारत है। तिसपर भी दलीलकी खातिर मान लें कि जिस समय अंग्रेजी-राज्यकी स्थापना हुई उस समय भारत अपनी रक्षा करनेमें असमर्थ था, तो भी आज तो वह इसकी अपेक्षा और भी ज्यादा असमर्थ है। और इसका मुख्य कारण सरकार ही है। सरकारने अपने प्रथम कर्त्तव्यका ही पालन नहीं किया। उसका कर्त्तव्य था कि वह हमें धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनाती उसके बदले आजकी हमारी स्थिति ऐसी जान पड़ती है कि हम बाहरी और भीतरी, दोनों तरहके ऐसे उपद्रवोंका मुकाबिला करनेमें असमर्थ हैं।

मैंने ऊपर लिखा है कि हम असमर्थ हैं। वास्तवमें हमें ऐसी प्रतीति होती है। यों तो सरकारने जानबूझकर हमें असमर्थ बनाये रखने और हमारी असमर्थताको बढ़ानेकी कोशिश की है। तथापि हम अपनी रक्षा करनेमें बिलकुल ही असमर्थ नहीं

  1. गुजरातमें अहमदाबादके समीप एक गाँव।