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लूट और चोरी

हो गये हैं। बाहरी उपद्रवोंसे अपनी रक्षा करनेके विषयमें मैं यहाँ विचार नहीं करूँगा, उसके सम्बन्धमें मैं पहले थोड़ा-बहुत लिख चुका हूँ। प्रसंग आनेपर उसके सम्बन्धमें और भी लिखूँगा। आज तो हम इन उपद्रवोंपर ही विचार करें जिनके बारेमें मैं ऊपर कह गया हूँ।

रोगका निदान करनेपर ही उसका उपचार हाथ आता है। पहले इन उपद्रवों के कारणोंकी खोज करें। जोटाणामें मकरानी और बलूची[१] लोग उपद्रव करते हैं और खेड़ामें धाराला। यह बताया गया कि जोटाणामें मकरानी और बलूची लोगोंके दिलोंसे सरकारका भय जाता रहा है और वे अब यह मानकर कि उन्हें कोई दण्ड देनेवाला नहीं है, लूटपाटका धन्धा करते हैं। धारालोंके लूट करनेका कारण यह है कि पाटीदार खुद पैसे कमानेकी खातिर धारालोंको उकसाकर उनसे लूट-पाट करवाते हैं और कोई-कोई एक-दूसरेसे दुश्मनी निकालनेके लिए भी धारालोंकी बुरी प्रवृत्तियोंका उपयोग करते हैं।

इसका सरल और सीधा उपाय तो यह है कि हम मकरानी, बलूची और धारालोंको अपना भाई समझ उनसे अच्छे लोग बननेका अनुरोध करें। वे अगर भूखके कारण लूटपाट करते हों तो उनकी भूख दूर करें, उन्हें शिक्षा दें और उनकी अच्छी भावनाओंको जाग्रत करें। अगर हम स्वराज्यका उपभोग कर रहे होते तो क्या करते? हमारा स्वराज्य व्यवस्थित होता तो हम उन्हें सुधारनेका अवश्य प्रयत्न करते।

सुधारका यह काम साधुओंका है। पहले भी साधु ही ऐसे लोगोंको बोध देते थे। स्वामीनारायणने स्वयं सामान्य वर्णोंपर अच्छा असर डालकर उनकी बुरी आदतोंको छुड़वाया था। सब सम्प्रदायोंके साधुओं-फकीरोंका धर्म है कि वे निर्भय होकर इन कौमोंके बीच जायें और अपनी जान जोखिममें डालकर भी इन लोगोंको उनके अनुचित धन्धोंसे विरत करनेका प्रयत्न करें। यदि साधु अपने इस आवश्यक कार्यको हाथमें लें तो थोड़े ही अर्सेमें वे धाराला, मकरानी और बलूची कौमोंपर असर डाल सकेंगे।

पाटीदारोंपर जो आरोप लगाया गया है अगर वह सही है तो उन्हें आपसी द्वेषभावको छोड़ना चाहिए और उसी तरह चोरीका माल खरीदकर पैसा कमानेकी आदतको पाप मानना चाहिए। पाटीदार बहादुर और ज्ञानी कौम कही जाती है। खेड़ाके संघर्षके[२] समय उन्होंने सारे हिन्दुस्तानको अपने शौर्य, चातुरी, एकता और समझदारी आदि गुणोंका परिचय दिया था। इस कौमको आपसमें द्वेष रखने और अनुचित साधनोंसे कमाई करनेकी आदत कतई शोभा नहीं देती।

धारालोंमें कितने ही ज्ञानी और विवेकी नेता हैं, उन्हें धारालोंकी स्थिति सुधारनेका निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए।

उपर्युक्त सब प्रयत्न एक दूसरेके पूरक हैं। लेकिन अगर हम एक बार ठीक तौरसे समझ लें कि ये सब प्रयत्न निष्फल होंगे तो फिर मैं आप सबसे अवश्य ही कहूँगा कि हमें इन चोर-डाकुओंका मुकाबिला करनेके लिए शक्ति जुटानी चाहिए।

  1. फारसमें मकरानसे और बलूचिस्तानसे भारत आनेवाली जातियोंके वशंज।
  2. १९१८ की गर्मियोंमें; देखिए खण्ड १४ ।