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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह शक्ति हथियारोंका परित्याग करनेपर भी जुटाई जा सकती है। यदि प्रत्येक गाँवमें थोड़ेसे पुरुष अपने प्राणोंको संकटमें डालनेकी शक्ति पैदा कर लें तो उन्हें रक्षक बनकर गाँवकी चौकसी करनी चाहिए। जब किसी भी गाँवको लूटनेके लिए चोर आदि आयें तब सब लोग जागृत रहें, डरें नहीं और लड़नेके लिए तैयार हो जायें। लुटेरे इसे देखकर अवश्य भाग जायेंगे। मैंने सुना है कि लुटेरोंके पास बन्दूकें आदि होती हैं। हों; बहादुर व्यक्ति बन्दुकवालेके साथ भी लड़ सकता है। मैंने बन्दूक धारियोंको भी मात कर देनेवाले अनेक लोगोंके बारेमें सुना है। यह कोई असम्भव बात नहीं है। बन्दूक चला सकनेवाला व्यक्ति एक तो हमेशा हथियार अपने साथ नहीं रखता, दूसरे कभी सशस्त्र व्यक्तिसे भी मुठभेड़ हो सकती है। तब वह पीछे न हटकर जूझता है। शौर्यका माप हमेशा मरनेकी शक्तिमें निहित है। अतएव शरीरसे दुर्बल व्यक्तिमें भी शौर्य हो सकता है। अपनी जान बचाने जितना शौर्यतो सबमें होना चाहिए और कमसे-कम इतनी शिक्षा सबको ले लेनी चाहिए। यह शिक्षा तलवार चलानेसे नहीं आती, अपितु मतको सुदृढ़ बनानेसे आती है, मौतका भय त्याग देनेसे आती है। लाठी आदि का प्रयोग इस शक्तिको प्राप्त करनेमें सहायक अवश्य होता है। फिर जिनकी अहिंसा-धर्मपर श्रद्धा नहीं बैठी है, जो मरनेके जौहरको नहीं पहचानते और जो मारकर भी अपना बचाव करनेको उत्सुक हैं उन्हें निःसन्देह तलवार आदि चलानेकी तालीम लेकर आत्मरक्षा करनेका बल प्राप्त कर लेना चाहिए।

दुःखकी बात तो यह है कि हमने यह मान लिया है कि हम अपना अथवा पडौसीका बचाव करनेमें असमर्थ हैं। शारीरिक रूपसे स्वस्थ होनेके बावजूद हमने चुपचाप पड़े रहकर एक ही चोरको सब-कुछ ले जाने दिया है। हमने पड़ोसी-धर्म पहचाना ही नहीं है फिर पाला तो कैसे होगा? ऐसी स्थितिमें से हमें तुरन्त निकल जाना चाहिए। हरेक गाँवमें सबसे बहादुर व्यक्तियोंको स्वयंसेवक बनकर लोकरक्षा करनेका उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेना चाहिए। चोर आदि जब यह समझ लेंगे कि जनता अपनी रक्षा करनेमें समर्थ है तब वे चोरी करते हुए डरेंगे। उत्तम तरीका तो वही है जो मैं पहले कह गया हूँ। हमें चोरोंको भी ईमानदार बनाना चाहिए। सबसे खराब रास्ता है चोरोंको दण्ड देनेका। चोरोंसे डरकर छिप जाना बचावका रास्ता नहीं है, यह तो साफ कायरता है। आजकी स्थितिका सामना करनेके लिए हमें सभी व्यावहारिक उपायोंको अपनाना चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३–१–१९२१