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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि वे आपके लिए ऐसा कार्य खोज निकालें, जिसे आप परीक्षाकी इस अवधिमें, आत्मशुद्धिके इस कालमें करें।

अब श्री दास और आप लोगोंके लिए यह जरूरी हो गया है कि आप सब मिलबैठकर ऐसे उपाय सोच निकालें, जिससे आप उस कामको पूरा कर सकें जिसे आपने शुरू किया है। जो भी हो, आप विद्यार्थियोंने सरकारी स्कूलों और सरकारी अनुदानसे चलनेवाले स्कूलोंको छोड़कर अपना एक कर्त्तव्य पूरा कर लिया है। लेकिन इस कामको स्थायी बनानेके लिए, उसे जारी रखनेके लिए और इसलिए कि आपकी सेवाओंका उपयोग स्वराज्य प्राप्तिके हेतु किया जा सके, उपाय और साधनोंको खोज निकालना आवश्यक है। और मैं आपको बता नहीं सकता कि मुझे कितना दुःख होता है जब मैं देखता हूँ कि एक ओर छात्र-जगत्ने इतनी उदारताके साथ राष्ट्रकी पुकारका उत्तर दिया है और दूसरी ओर बंगालकी महान् शिक्षण-संस्थाओंके प्राध्यापक, शिक्षा- शास्त्री और न्यासी, उन्हें जो नेतृत्व देना चाहिए, नहीं दे रहे हैं।[१] लेकिन कोई यह न समझे कि इस तथ्यकी ओर उनका और आपका ध्यान आकर्षित करके मैं उनपर अथवा उनके देशप्रेमपर कोई आक्षेप कर रहा हूँ। मैं जानता हूँ और मुझे पूरा विश्वास है कि वे सचमुच मानते हैं कि आपने ऐसा करके भूल की है। मैं जानता हूँ कि वे मानते हैं कि श्री दासने आपको यह सलाह देकर भूल की है कि आप अपनी अन्तरात्माकी आड़ लेनेकी कोशिश न करें बल्कि राष्ट्रके आह्वानका उत्तर दें। उनका खयाल है कि मैंने देशके सम्मुख असहयोग आन्दोलनका रास्ता प्रस्तुत करके एक गम्भीर भूल की है और वे सच्चे दिलसे मानते हैं कि मेरा विद्यार्थियोंको सरकारी शिक्षण संस्थाओंका बहिष्कार करनेकी सलाह देना तो और भी बड़ी भूल है।

लेकिन मुझे जिन अनुभवोंसे गुजरना पड़ा है, मैंने जो-कुछ सुना और पढ़ा है, अपने गुरुजनों और नेताओंके प्रति मेरे मनमें जो श्रद्धाभाव[२] है, उस सबके बावजूद मैं आपके सामने स्वीकार करूँगा कि मैंने देशको जो कदम उठानेकी सलाह दी है, उसके सही होनेके बारेमें मेरा विश्वास पहले से भी ज्यादा दृढ़ हो गया है। मुझे इस बातका पहलेसे ज्यादा यकीन हो गया है कि अगर हम अपनी पसन्दके स्वराज्यकी स्थापना करना चाहते हैं, अगर हम भारतकी खोई हुई प्रतिष्ठाको पुनः प्रतिष्ठित करना चाहते हैं, अगर हम इस्लामकी डगमगाती प्रतिष्ठाको फिरसे दृढ़ आधारपर स्थापित करना चाहते हैं, तो हमारे लिए इस सरकारको यह बता देना अत्यन्त आव- श्यक है कि उसे हमारी ओरसे किसी तरहकी मदद नहीं मिलेगी, और न ही हम ऐसी सरकारसे कोई सहायता लेंगे जिसने अपने-आपको हमारे विश्वासके अयोग्य सिद्ध कर दिया है। मैं जानता हूँ कि आपमें से जो लोग शंकाशील हैं वे मुझसे अथवा अपने-आपसे कहेंगे कि हमने ऐसे मंचोंसे अनेक बार इस तरहकी बातें सुनी हैं। यह सच है; आपने अवश्य सुनी होंगी। लेकिन मैक्समुलर हमें बता गये हैं——जो वास्तवमें

  1. अमृतबाजार पत्रिकामें यह वाक्य इस प्रकार समाप्त होता है, "उस सीमातक कार्य करनेके लिए आगे नहीं आए हैं जितना कि उन्हें आना चाहिए था"।
  2. अमृतबाजार पत्रिकामें यह वाक्य इस प्रकार है : "जो श्रद्धाभाव रखनेका मैं दावा करता हूँ।"