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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अगर मैं अपने देशको न जानता होता, अगर मैं जनसाधारणके मानसको न समझता होता तो जैसे, मेरे विचारमें, भारतका शिक्षितवर्ग दिग्भ्रमित हो गया है वैसे ही मैं भी दिग्भ्रमित हो जाता, मैं भी भूल कर बैठता। आप सब जानते हैं कि मैं बीस वर्ष आधुनिकताके कोलाहलके बीच रहा हूँ——मैं एक ऐसे देशमें रहा हूँ, जिसने हर ऐसी चीजकी नकल की है जो आधुनिक है। मैं एक ऐसे देशमें रहा हूँ, जो नये जीवनसे सन्दित हो रहा है। दक्षिण आफ्रिकामें इस दुनियाके कुछ बहादुरसे-बहादुर व्यक्ति रहते हैं और वहाँ मैंने आधुनिक सभ्यताको उसके सर्वोत्तम रूपमें देखा है और मैं यहाँ आपको, बंगालके नवयुवकों और अपने शिक्षित नेताओंको यह बता देना चाहता हूँ कि आधुनिक सभ्यताके इस सर्वोत्तम रूपका भी मुझे जो अनुभव हुआ है। उसी अनुभवके आधारपर सन् १९०८ में मैं स्पष्ट रूपसे इसी निष्कर्षपर पहुँचा कि "भगवान भारतको इस आधुनिक अभिशापसे बचाये।" यह एक सबक है जो मैंने दक्षिण आफ़्रिकामें सीखा है। उसपर मैं १९०८से ही चलता आ रहा हूँ। पांच वर्ष पहले भारत आनेके बादसे मैंने लगातार लोगोंको धीरे-धीरे लेकिन दृढ़ता के साथ वही सबक समझाता आ रहा हूँ। प्राचीन सभ्यतामें मेरी जो आस्था थी——हमारी सादगीमें मेरी जो श्रद्धा थी, प्रत्येक भारतीयकी धर्मनिष्ठतामें——चाहे वह भारतीय हिन्दू हो या मुसलमान, ईसाई हो या पारसी अथवा यहूदी——उसकी सहज धर्मनिष्ठतामें मेरा जो विश्वास था, उसीने उपहास, शंका और विरोधके अन्धकारपूर्ण दिनोंमें मुझे दृढ़ बनाये रखा है।

मैं जानता हूँ कि आज भी मुझे और आप लोगोंको बहुत जबरदस्त विरोधका सामना करना पड़ रहा है। अभी तो हमने यह संघर्ष आरम्भ ही किया है और यह सच है कि आप कलकत्ताके लोगोंने पिछले वर्ष सितम्बर माहमें[१] जो जबरदस्त संघर्ष छेड़ा है, यदि हम उसे जीतना चाहते हैं तो हमें उसी विश्वासके साथ उसे जारी रखना होगा जिस विश्वासके साथ हमने उसे आरम्भ किया है। मुझे आप लोगोंके सामने——आप जो आधुनिक परम्पराओंके बीच पले हुए प्रतीत होते हैं, आप आधुनिक लेखकोंकी रचनाओंके ज्ञानसे ओत-प्रोत जान पड़नेवाले लोगोंके सामने एक बार फिर इस बातको दोहरानेमें कोई संकोच नहीं हो रहा है कि यह एक धार्मिक लड़ाई है। मुझे यह कहनेमें कोई संकोच नहीं है कि यह आन्दोलन राजनीतिक दृष्टिकोणमें कान्ति लानेका, अपनी राजनीतिमें आध्यात्मिकताका समावेश करनेका एक प्रयत्न है। हम अपनी राजनीतिमें आध्यात्मिकताका जितना अधिक समावेश करेंगे, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, हम अपने लक्ष्यके उतने ही निकट पहुँचेंगे। चूँकि मैं मानता हूँ कि भारतका जन-मानस आज इसके लिए तैयार है, चूँकि मेरा विश्वास है कि भारतका जन-मानस ब्रिटिश शासनके वर्तमान स्वरूपसे तंग आ गया है, इसलिए मैंने यह कहनेकी हिम्मत की है कि स्वराज्य बहुत आसानीसे एक वर्षके भीतर प्राप्त किया जा सकता है।

इस वर्षके चार महीने बीत चुके हैं। आजकी रात बंगालके नवयुवकोंसे बातें करते हुए मेरे विश्वासकी ज्योति जितनी प्रखर हो उठी है उतनी प्रखर इससे पहले

  1. जब कलकत्तामें कांग्रेसके विशेष अधिवेशनमें असहयोगके सम्बन्धमें प्रस्ताव पास किया गया।