पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/३०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७३
भाषण : कलकत्तामें

कभी नहीं हुई। आपने मुझमें पहलेकी अपेक्षा बहुत अधिक आशा भर दी है; बहुत अधिक साहस और बलका संचार किया है। अगर ईश्वरने मुझे तथा शौकत अली और मुहम्मद अलीको जीवित रखा तो हम इसी वर्ष स्वराज्यका झंडा फहरायेंगे। लेकिन अगर ईश्वरकी यही इच्छा हुई कि इस वर्षके शेष आठ महीने समाप्त होनेसे पहले ही मेरी भस्म गंगामें प्रवाहित हो जाये तो उस हालतमें भी मैं इस विश्वासके साथ ही मरूँगा कि आप इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त करके रहेंगे।

यह बात उतनी कठिन नहीं है, जितनी कठिन आप समझ रहे होंगे। कठिनाई है केवल हमारे विश्वासकी। कठिनाई इस बातमें निहित है कि हम कौंसिल भवनमें बैठकर स्वराज्यका पाठ पढ़ना चाहते हैं। कठिनाई हमारी इस धारणामें निहित है कि हम सोलह वर्षके प्रशिक्षण-कालसे गुजरे बिना स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते; और अगर हम इन सब बातोंमें विश्वास करते हैं तो मुझे स्वीकार करना पड़ेगा कि हमें स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए अभी सौ साल चाहिए। लेकिन चूँकि मुझे यकीन है कि हमें इन चीजोंकी नहीं, बल्कि विश्वास, साहस और बलकी आवश्यकता है और चूँकि मैं मानता हूँ कि जनतामें आज ये सब गुण मौजूद हैं, इसलिए मुझे विश्वास है कि स्वराज्य इसी वर्ष प्राप्त किया जा सकता है।

कांग्रेसकी अपीलका क्या मतलब है? उस अपीलका मतलब यह है कि आपके और मेरे सामने, समस्त शिक्षित भारतीयों और व्यापारी समुदायके सामने——करोड़ों कारीगरों और खेतीहरोंके इस देशमें हम जो इन वर्गोंके मुट्ठी-भर लोग हैं उनके सामने——एक कसौटी रखी गई है। विश्वास कीजिए कि कांग्रेस आपकी सहायतासे, और अगर आवश्यकता पड़ी तो आपकी सहायताके बिना भी, इस उद्धत सरकारसे भारतको विलग कर लेगी और स्वतन्त्रताका झंडा फहराकर रहेगी। सारा भारत आजके शिक्षित भारतमें ही संकेन्द्रित नहीं है। अगर भारतका समस्त शिक्षित समुदाय बराबर शंकालु ही बना रहे, उसमें आशा, विश्वास, साहस और बल न हो तो भी भारत अपनी आशाको सजीव रख सकता है। मैं इसी विश्वासपर टिका हुआ हूँ। लेकिन मुझे यकीन है कि अगर छात्र-जगत और बंगालके विद्यार्थी अपने व्रतके[१] प्रति सच्चे रहते हैं तो बंगाल और भारतके प्राध्यापक, न्यासी और शिक्षा-शास्त्री राष्ट्रके आह्वानके उत्तरमें आन्दोलनमें शामिल होंगे और उनके असन्तोषका शिशिर आशाके बसन्तमें परिणत हो जायेगा।

मैं आप बंगालके नवयुवकोंसे अनुरोध करता हूँ कि आपने जो निश्चय किया है, कुछ भी क्यों न हो जाये, उसपर दृढ़ रहें। मैं जानता हूँ कि श्री दास अपने वचनपर अटल रहेंगे। एक प्रख्यात बंगालीने[२] उन्हें १०,००० रुपये तो तत्काल देनेका वचन दिया है और वे १०,००० वार्षिक चन्देके रूपमें आगे भी देंगे। उन्हें मारवाड़ी लोगोंने——कलकत्ताके मारवाड़ी अधिवासियोंने भी कुछ वचन दिये हैं। जहाँ-

१९–१८

  1. अमृतबाजार पत्रिकामें यह वाक्य इस प्रकार है "... अपने विश्वास, अपने व्रतके प्रति...।"
  2. गोपालचन्द्र सिंह जिन्होंने पहले भी राष्ट्रीय स्कूलों और कालेजोंकी स्थापनाके लिए एक लाख रुपये दिये थे।