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भाषण : कलकत्तामें व्यापारियोंकी सभामें

प्रस्तावनामें सचमुच खामियाँ दिखा दी गई या अगर इस प्रस्तावको अन्य किसी प्रकारसे नैतिक रूपसे दोषपूर्ण सिद्ध कर दिया गया तो समिति उन दलीलोंके अनुसार उचित कार्रवाई अवश्य करेगी।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ७४४२) की फोटो नकलसे।

 

१४०. भाषण : कलकत्तामें व्यापारियोंकी सभामें

२६ जनवरी, १९२१

भाइयो,

आप सब जानते हैं कि मैं कुर्सी पर बैठकर बोलता हूँ। मुझे इसमें शर्म महसूस होती है। मैं कुर्सी पर बैठना तो बिलकुल नहीं चाहता; लेकिन मजबूरी है। मुझे तो नौ महीनेमें स्वराज्य लेना है इसलिए मैं यह सब[१] नहीं चाहता। लोग मेरा सड़कोंपर गुजरना मुश्किल कर देते हैं।[२] मैं जानता हूँ कि लोग मुझे बहुत अधिक प्यार करते हैं; लेकिन बने तो मैं उन्हें [ऐसे प्रदर्शनसे] रोकना चाहता हूँ। इस सभा-भवनके बाहर जो अपार भीड़ है, उसके कारण कोई कामकाज करना सम्भव नहीं लगता। मेरा आधा घंटा बरबाद हो गया। अच्छा इन्तजाम नहीं किया गया, यही इसका कारण है। ऐसा नहीं होना चाहिए। जब मालूम है कि बहुत लोग आयेंगे तो उनके लिए भी इन्तजाम किया ही जाना था। कामका नुकसान नहीं होना चाहिए; रास्ते बन्द नहीं होने चाहिए और ट्रामें आदि नहीं रुकनी चाहिए। इस तरह लोगोंका समय बरबाद नहीं होना चाहिए। एक हजार आदमी सभा- भवनमें हैं और एक हजार बाहर। लोगोंके दो हजार घंटे आज बरबाद हो गये। मैं चाहता हूँ कि हिन्दी और उर्दूके अखबार भी [इस बातको] छापें कि पैर छूना बुरा है। मेरी प्रार्थना है कि वे मेरे पैर न छुएँ। मुझे शोरगुल से भी बड़ी परेशानी होती है। मेरी तबीयत अच्छी नहीं है। मुझसे "वन्देमातरम्", "महात्मा गांधीकी जय" के नारे सहन नहीं होते। यदि इन नारोंसे हमारा सच्चा भाव प्रकट नहीं होता है तो ये बेकार हैं। मेरे कहनेका मतलब यह है कि लोग जो-कुछ कहते हैं उसे कार्यरूपमें परिणत नहीं करते। मैं भी अपना बनिया-धर्म छोड़कर क्षत्रिय बन गया हूँ। यदि मैं क्षत्रिय न बना होता तो अपनी भावना रो-रोकर प्रकट करता। आप लोग मेरे पैर छुयें, निश्चय ही मुझे इस बातकी लालसा नहीं है। जब मेरी ऐसी इच्छा होगी तब मैं साफ-साफ कह दूँगा और यह तभी हो सकता है जब मेरा उद्देश्य पूरा हो जाये। आज तो मुझे अपनी प्रतिष्ठापर आँच आती दिखाई देती है——फिर भी ९ महीनोंमें स्वराज्य प्राप्त करना है। आप

  1. शायद गांधीजीका अभिप्राय जयके नारों और भीड़के अननुशासित प्रेम-प्रदर्शनसे है।
  2. जिस भवनमें यह सभा हो रही थी उसके सामने इतनी भीड़ थी कि वहाँ पहुँचनेपर गांधीजी करीब पौन घंटेके बाद पीछेके दरवाजेसे भीतर लाये जा सके।