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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सब लोग एक हो जायें और मुझे इसमें सहायता पहुँचायें। "वन्देमातरम्", "हिन्दू-मुस्लिम जिन्दाबाद", "अल्लाहो-अकबर" आदि नारोंकी जरूरत नहीं है। मैं जो-कुछ करना चाहता हूँ वह मैं जरूर ही करके छोडूँगा। मैं स्वराज्य अवश्य लूँगा। यदि इस देशके ३० करोड़ लोग कहें कि वे मेरे साथ नहीं हैं तो भी मैं अपना काम करूँगा और स्वराज्य लूँगा लेकिन मैं शोरगुल पसन्द नहीं करता। इन नारों और शोरगुलके सामने मैं मेमनेकी तरह कमजोर पड़ जाता हूँ। पैर पड़ना भी अच्छी बात नहीं है। सबसे हाथ जोड़कर नमस्कार कीजिये। कोई भी व्यक्ति, विशेषतः इस कलियुगमें, पैर छूने के योग्य नहीं है। अब समय बदल गया है। यदि आप ३० करोड़ लोगोंका काम पूरा करना चाहते हैं तो धन देकर मदद कीजिये। प्रयत्न करके रुपया इकट्ठा करिये, मुझे दीजिये और उसका मुझसे हिसाब माँगिये। किसीको खजांची बना लीजिये। यदि आपको लगे कि आप स्वराज्य नहीं ले सकते तो रुपये देकर मेरी मदद कीजिये।

यदि आप रुपयेसे भी मदद नहीं करते तो स्वराज्य लेना असम्भव न हो पर मुश्किल जरूर होगा। यदि भारतके छात्र मेरी मदद नहीं करते तो उससे कोई हानि नहीं। यदि वकील मदद नहीं देते तो भी कोई बात नहीं। यदि धनी लोग रुपयेसे सहायता नहीं करते तो उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। स्वराज्य लेना मजदूरों और किसानोंपर निर्भर है। जन्मसे तो मेरा भी वही धन्धा है जो आपका है। मैं खुद व्यापारी ही था। मैं वकील था और उससे रुपया कमाता था। मैं छात्र भी हूँ और मेरा खयाल है मैं एक अच्छा छात्र हूँ। यदि आपमें शक्ति हो, बल हो, यदि आप भारतपर अपना शासन चाहते हों तो बलिदान कीजिये। अपना, अपने बच्चोंका और अपने माता-पिताका बलिदान कीजिए। जीवनमें जो-कुछ हो उस सबका बलिदान कीजिए। स्वराज्य किसानोंपर निर्भर करता है। यदि वे मदद न करें तो स्वराज्य नहीं मिल सकता। यदि वे सरकारको सहयोग दें तो आप सब लोगोंका मिला-जुला सहयोग भी स्वराज्य लेनेमें सहायक नहीं होगा। यदि २५ करोड़ लोग अपने कर्त्तव्य पालनसे विमुख रहें तो स्वराज्य नहीं मिल सकता। अब मैं अपने मारवाड़ी भाइयोंसे कुछ कहना चाहता हूँ। अध्यक्षने अभी कहा है कि आजकी सभामें धनाढ्य लोग नहीं आये। इससे मुझे बहुत दुःख हुआ। लेकिन उनके न आनेका कारण है। वे इस सरकारकी छायामें पले-बढ़े हैं और उन्होंने अपनी विशाल सम्पत्ति उसीके संरक्षणमें इकट्ठी की है। उन्होंने अपना धन उसके सहयोग से कमाया है, इसलिए वे उससे डरते हैं। अंग्रेज भारतीयोंके सहयोगसे रुपया कमाते हैं, हमारे मारवाड़ी भाई अभीतक इस सत्यको नहीं समझ पाये हैं। मैं आपसे यह नहीं कहता कि आप अपना व्यापार छोड़ दें; लेकिन मैं आपसे यह जरूर कहता हूँ कि आप ईमानदारीसे व्यापार करें और झूठका सहारा न लें। आप कह सकते हैं कि यदि हम झूठका सहारा नहीं लेंगे तो फकीर हो जायेंगे। मेरा खयाल है कि आपका फकीर हो जाना ज्यादा अच्छा है। उस हालतमें मैं आपसे कोई रुपया नहीं लेना चाहूँगा। आप विदेशी मालका व्यापार न छोड़ें; किन्तु आपको विदेशी कपड़ेका व्यापार अवश्य छोड़ देना चाहिए। ईश्वरसे डरनेवाला ईश्वर ही का काम करेगा। ईश्वरने आपको धन दिया है। इस धनसे आप अपने शरीरको सजाते