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भाषण : कलकत्तामें व्यापारियोंकी सभामें

हैं। आप इस धनकी बदौलत मलमलकी पगड़ी पहनते हैं। मेरी प्रार्थना है कि आप भय त्याग दें, खद्दरकी पगड़ी पहनें और मिलोंके साथ एजेंसियोंकी हदतक भी सम्बन्ध न रखें। मैंने अपने लड़केसे यह व्यापार छोड़कर खद्दरका व्यापार करनेको कहा, क्योंकि वह स्वदेशीका व्यापार नहीं है। उसने जवाब दिया : "पिताजी, खद्दरका व्यापार तो चलता ही नहीं। ज्यादातर खादी दूकानमें पड़ी रह जाती है।" खद्दर, गाढ़ा, खादी कुछ भी कहिए, जैसी सुन्दर चीज दूसरी नहीं मिल सकती। मेरे सभी भाई और बहन उसे इस्तेमाल करते हैं और मजदूर, जो मेरे भाई हैं, उसे तैयार करते हैं। मिल-मालिक जो शोषण कर रहे हैं वह बहुत अनुचित है। जब रुईका दाम ९ रुपये है तब सूतका दाम ३४ रुपये क्यों हो? मैं जानता हूँ खादीके व्यापारमें मुनाफा बहुत कम होता है। इसका कारण यह है कि मिल-मालिक सुतका दाम बढ़ा देते हैं। हमारे चमार और मेहतर भाइयोंके पास कपड़ा नहीं है; हमें उन्हें कपड़ा देना है। कोई वैष्णव ऐसा भी कह सकता है कि हमारी थालियोंकी झूठन और मैले-कुचैले फटे-पुराने कपड़े उनके लिए काफी होंगे। लेकिन मेरे लिए तो वे प्रातःस्मरणीय हैं और मैं उन्हें अपनी बराबरीका तो मानता ही हूँ। यदि आप मिलका कपड़ा छोड़कर खद्दर पहनने लगें तो उसकी प्रतिष्ठा बढ़ जायेगी।

यदि आप जनकपुरी, उड़ीसा जायें तो आप देखेंगे कि वहीं गरीब लोगोंकी हालत बहुत ही दयनीय है। उन्हें खानके लिए सत्तू मिल जाता है, घी कभी उन्हें मयस्सर नहीं होता। आप तो तीसरे दर्जेमें नहीं चलते; लेकिन मैं तीसरे दर्जेमें ही चलता था। तीसरे दर्जेके मुसाफिरखानोंमें मैं देखता कि लोग अपनी किसी थैलीमें से मुट्ठीभर सत्तू निकालते, उसमें थोड़ा नमक और थोड़ी लालमिर्च डालते और तब उसे पानीमें घोलकर खा जाते। यही उनका भोजन होता था। मैं तो क्षत्रिय हो गया हूँ; इसलिए मेरी आँखोंमें आँसूकी बूँद भी नहीं आती थी। अन्नपूर्णा माँके इस देश में घी नहीं मिलता। चम्पारनमें लोग भूखों मर रहे हैं। इन सब बातोंके निवारणका एक ही उपाय है और वह है चरखा चलाना। यदि सब स्त्रियाँ और लड़कियाँ चरखा चलाने लगें, तो वे सुत कातकर अपना गुजारा कर सकेंगी और खद्दरकी कीमतपर भी इसका असर पड़ेगा। स्वराज्य मिल गया तो हम मलमल भी बना सकेंगे। मैं स्वयं एक अच्छा कारीगर हूँ और मलमल तैयार कर सकता हूँ; लेकिन मैं कहता हूँ कि आपको तो ७ से २० नम्बरतक का ही सूत कातना है। उससे साड़ियाँ और बुर्के आदि बन सकेंगे। आपकी पगड़ियाँ बनानेमें ८० नम्बरका सूत लगता है। यह विलायती होता है और उसे काममें लाना धर्म-विरुद्ध है। मारवाड़ियोंने अपना धर्म छोड़ रखा है। आप विदेशी चीजोंका व्यापार छोड़ दें; अभी सभी चीजोंका नहीं, केवल विलायती कपड़ेका छोड़ दें। आप अपने घरमें विलायती कपड़ा न रखें और अपनी माताओं और पत्नियोंसे कह दें कि वे उसे उतार फेकें और फिर न पहनें। इससे आपकी कोई हानि नहीं होगी। आप यह सारा कपड़ा दक्षिण आफ्रिका भेजकर बिकवा दें। वहाँ कताईकी मशीनें न होनेसे इसकी माँग है। भारत सती स्त्रियोंके सतपर टिका हुआ है। मुसलमान स्त्रियाँ चरखेपर बहुत सूत कातती हैं।