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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यदि आप गायोंकी रक्षा करना चाहते हैं तो आप खिलाफतकी रक्षा कीजिए। कई लखपति सज्जन गो-वध बन्द करने की बात कहते हैं, लेकिन अंग्रेजोंको सहयोग देते हैं। अत्याचारी अंग्रेज गायोंका खून पीते हैं। अंग्रेजी मालकी एजेंसियाँ लेना धर्मके विपरीत है। मुसलमानोंके विरुद्ध यह कहा जाता है कि वे गो-वध करते हैं। लेकिन मैं कहता हूँ कि बाँदरामें[१] ५ वर्षके अन्दर जितनी गायें काटी जाती हैं, उतनी ७ करोड़ मुसलमान २५ साल में भी नहीं मार सकते। मैं चम्पारनके बारेमें फिरसे आपको कुछ मोटी-मोटी बातें बताता हूँ। मैंने गोवधके बारेमें एक मारवाड़ीसे बात की तो वह रो पड़ा। मैं नहीं रोया। मैंने उसका ध्यान बैलगाड़ीमें जोते हुए एक बैल की हालत की ओर खींचा। आप गायोंकी पूजा करते हैं; लेकिन बैलोंको मारते हैं, क्या यह ठीक है? गोशालाओंकी हालत देखिए। गायें दूध देती हैं; भैंसें भी दूध देती हैं। वे इतनी अधिक दुही जाती हैं कि उनके थनोंसे खून झरने लगता है और उसे हम पीते हैं। यदि आप सचमुच गायोंकी रक्षा करना चाहते हैं तब आप खिलाफतके मामलेमें मुसलमानोंकी मदद कीजिए। मुसलमान कृतघ्न नहीं हैं, लेकिन आप उनसे यह न कहिये कि पहले आप गायोंकी रक्षा करिये तब हम खिलाफतके मामलेमें आपकी मदद कर सकेंगे। यह अनुचित है। इसमें सौदेकी कोई बात नहीं है। आप अपने भाइयोंके लिए अपनी जान दे दें, सर्वस्व लुटा दें और अपनी धार्मिकतापर कायम रहें। हिन्दू होनेके नाते आप कायर न बनें; बल्कि साहसी बनें।

यदि आपके भण्डारमें कपड़ेके थान पड़े हों तो आप उन्हें बेच डालें या जला दें और यह वचन दें कि आप फिर कभी वैसे कपड़ेका न व्यापार करेंगे और न खुद पहनेंगे। आप जुलाहोंको भी समझायें कि उन्हें विलायती सूत काममें नहीं लाना चाहिए। उनके पास जो माल जमा हो, उन्हें कहिए कि वे उसे बेचनेके बाद २० नम्बरसे ज्यादाका सूत काममें न लायें और खुद भी मोटे सूतके बने कपड़े पहनें। मैं तीन बातें चाहता हूँ। पहली बात यह है : "मेरी रक्षा कीजिए।" आप गांधीको तंग न करें, उसे तकलीफ न दें और "गांधीजीकी जय" न चिल्लायें, उसे 'हराम' समझें। दूसरी बात यह है : "रुपयेकी जरूरत है। आप जितना दे सकें उतना दें और इस दिशामें जो-कुछ कर सकते हैं करें। आज गल्ला और तिलहनके व्यापारियोंने मुझे १०,००० रुपये दिये हैं और यह वचन दिया है कि वे चन्दा करके और भी रुपया देंगे। मैं यह चाहता हूँ कि आप जो-कुछ भी दें वह नम्रतापूर्वक और उदारताके साथ दें। मैं जैसे ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ, वैसे आपसे भी प्रार्थना करता हूँ। आप अपने भीतर धर्मकी भावना जागृत करें और देशभक्तिके भाव उत्पन्न करें। तीसरी बात यह है : 'आप शुद्धता अपनायें, देशभक्त बनें और स्वराज्य तथा खिलाफतके निमित्त काम करें।' खिलाफत कामधेनु है। आप अपने घरोंमें शुद्ध स्वदेशी चीजोंका व्यवहार करें। स्वदेशी ही आपका हित करनेमें समर्थ है। हमारा ६० करोड़ रुपया देशके बाहर चला जाता है। आप इसको देशमें रखिए; ९ महीनोंमें आपको स्वराज्य मिल जायेगा। भाइयो, आपने मेरा भाषण इतने प्रेम और इतने ध्यानसे सुना है। मैं इससे बहुत प्रसन्न हुआ

  1. बम्बईका एक उपनगर जहाँ एक बहुत बड़ा कसाईघर है।