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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रातमें इस प्रश्नको लेकर कैसा बवंडर उठ खड़ा हुआ है। क्या तुमको मालूम है कि मैंने जानबूझकर एक ढेढ़की लड़की गोद ले ली है। इसके सिवा एक ढेड परिवार भी आश्रममें वसा लिया गया है। तुम्हारा ऐसा सोचना कि मैं एक क्षणके लिए भी इस प्रश्नकी अपेक्षा किसी दूसरे प्रश्नको अधिक महत्व दे सकता हूँ, मेरे साथ अन्याय करता है; लेकिन मुझे इस सम्बन्धमें अंग्रेजीमें भाषण देने या लेख लिखनेकी जरूरत नहीं है। मेरी सभाओंमें अधिकांश लोग ऐसे होते हैं जो 'अन्त्यजों'के विरोधी नहीं हैं। मुझे कांग्रेसमें इस सम्बन्धमें प्रस्ताव पास करवानेमें भी कोई कठिनाई नहीं हुई थी।[१]

इसके अलावा मैं जिन बातोंको नहीं जानता उनके बारेमें कुछ नहीं कह सकता। मैं बंगालके नामशूद्रोंके[२] बारेमें केवल मोटी-मोटी बातें ही जानता हूँ। कदाचित् यह प्रश्न अस्पृश्यताका नहीं है बल्कि जमींदार और उसके आसामीके सम्बन्धोंका है। मैंने तो अस्पृश्यताके पापको ही हाथमें लिया है। मैं हिन्दू पावित्र्यवादपर आक्रमण कर रहा हूँ। चूँकि हिन्दुओंका यह खयाल है कि मानव-जातिके एक वर्गको छूना इसलिए पाप है कि वह किसी विशेष वातावरणमें पैदा हुआ है, इसलिए मैं एक हिन्दू होनेके नाते यह सिद्ध करनेमें लगा हूँ कि यह पाप नहीं है और इन लोगोंको छूनेको पाप समझता ही पाप है। यह प्रश्न भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्त करनेके प्रश्नसे भी महत्वपूर्ण है; लेकिन यदि मुझे स्वतन्त्रता जल्दी मिल जाये तो मैं इस समस्यासे ज्यादा अच्छी तरह निबट सकता हूँ। अस्पृश्यताके अभिशापसे मुक्त होनेसे पहले भारतका अंग्रेजोंके आधिपत्यसे मुक्त हो जाना असम्भव नहीं है। अंग्रेजोंके आधिपत्यसे युक्त होता स्वराज्यका एक आवश्यक अंग है और जबतक यह आधिपत्य हट नहीं जाता तबतक हमारी प्रगति सभी मामलोंमें रुकी रहेगी। क्या तुम जानते हो कि इस समय गुजरातमें जो लोग मेरा विरोध कर रहे हैं वे वस्तुतः सरकारका समर्थन कर रहे हैं और सरकार मेरे विरुद्ध उनका उपयोग कर रही है?

रातको २ बजे मेरे मनमें तुम्हारा और इस प्रश्नका विचार उठ आया और फिर मैं सो नहीं सका। मैं ४ बजे तुमको पत्र लिखने बैठ गया। मैं इस प्रश्नको सम्बन्धमें जो-कुछ कहना चाहता हूँ वह सब स्पष्ट नहीं कर पाया हूँ। मगर इसमें मेरे लिए क्षमा-याचना करनेकी कोई बात नहीं है। इस प्रश्नकी जितनी साफ तसवीर मेरे दिलमें है उसका उतना साफ चित्रण मैं नहीं कर पाया हूँ। छात्रोंके सम्बन्धमें तुमने जो कुछ लिखा है सो ठीक है। तुम एक अंग्रेजकी तरह सोच रहे हो। मैं तुमसे यह भी नहीं छुपाना चाहता कि इस प्रश्नको लेकर 'गुजराती' मेरी स्थिति यह कहकर कमजोर करनेका प्रयत्न कर रहा है कि इस मामलेमें मुझपर तुम्हारा प्रभाव पड़ा है। उसके कहनेका आशय यह है कि मैं एक हिन्दूके रूपमें नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्तिके रूपमें बोल रहा हूँ जो तुम्हारी ईसाइयतके प्रभावमें आकर बिगड़ चुका है। मैं जानता हूँ कि यह एक बिलकुल बेतुकी बात है। दक्षिण आफ़्रिकामें मैंने यह काम तुम्हारा नाम

  1. नागपुरके कांग्रेस अधिवेशनमें दिसम्बर १९२० में हिन्दू समाजसे अस्पृश्यता निवारणके सम्बन्धमें एक प्रस्ताव पास किया गया था।
  2. बंगालका एक दलितवर्ग।