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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दृष्टिसे आगे बढ़कर असहयोगका समर्थन करे। मुझे ऐसा लगता है कि गुरुदेवको[१] इस सत्यकी पूर्णता और आवश्यकताका अहसास नहीं हुआ है।

मैं यहाँसे दिल्लीके लिए सम्भवतः इसी चौथी तारीखको रवाना हो जाऊँगा और ९को बनारस पहुँचूँगा। मैं कॉरबेटके[२] लिए एक निजी चिट्ठी भी भेज रहा हूँ।

प्रगाढ़ स्नेह सहित,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ९५८) की फोटो-नकलसे।

 

१४५. पत्र : लालचन्दको

२९ जनवरी, १९२१

प्रिय लालचन्द,

मैंने पूर्वी आफ़्रिकाका पत्र पढ़ा है। मुझे लगता है कि तुम सम्पादकके रूपमें चमक नहीं सकते। हाँ, यह हो सकता है कि जहाँ किसी तरहका प्रकाश न हो वहाँ चमक सको। किन्तु तुम तो न्यूनतम स्तरतक भी नहीं पहुँचे। न तुम्हारी कोई अपनी शैली है और न बारीकीसे कुछ जानते हो।[३] इसलिए पूर्वी आफ़्रिकाके हमारे देशभाइयोंको जिस नेतृत्वकी आवश्यकता है वह तुम नहीं दे सकते। किन्तु तुम्हारा पथप्रदर्शन मेरे द्वारा नहीं, बल्कि तुम्हारे अन्तःकरणकी आवाज द्वारा होना चाहिए।

अस्तु, मैं सम्पादकका भार किसी अन्यको देनेके बारेमें गम्भीरतासे सोच रहा हूँ। मैं तुम्हें सम्पादकके रूपमें नहीं बल्कि प्रबन्धकके रूपमें उपयुक्त समझता हूँ। मुझे बराबर डर बना रहता है। मैं नहीं जानता कि तुमने जाति-पाँतिके सम्बन्धमें क्या लिखा है। जोजेफने मुझे डरा दिया है। तुम्हें ऐसे नाजुक विषयपर बिलकुल नहीं लिखना चाहिए था। तुम्हें चाहिए था कि मेरा इन्तजार करते। तुम जानते हो कि मुझे इस प्रश्नपर अपने विचार प्रकट करनेकी कोई जल्दी नहीं है; यद्यपि इसमें इस बातका खतरा है कि मुझे गलत समझ लिया जाये, पर इस कार्यके लिए मुझे फुरसत चाहिए।

नागपुर कांग्रेसमें दिये गये [अपने] भाषणकी रिपोर्ट मैंने देखी है। इसमें बहुत स्पष्ट गलतियाँ हैं। अपनी कमजोर अंग्रेजीके कारण तुम लेखोंमें समुचित सुधार करनेमें भी असमर्थ हो। यदि तुम मेरे भाषणोंको पुनः प्रकाशित करो तो उन्हें ठीकसे

  1. रवीन्द्रनाथ ठाकुर।
  2. जी॰ एल॰ कॉरबेट, सन् १९२० में दक्षिण आफ्रिकी संघ-सरकार द्वारा नियुक्त एशियाई जाँच आयोगके सदस्य।
  3. देखिए "पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजको", १९–१–१९२१ ।