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पत्र : बर्माके एक मित्रको

सुवारा जाना चाहिए। इसलिए मैं ऐसा व्यक्ति चाहता हूँ जो तुमसे अधिक गहरा और बहुश्रुत हो ताकि मैं 'यंग इंडिया' के बारेमें निश्चिन्त हो जाऊँ। इसलिए तुम्हें किसी भी समय कुर्सी खाली करनेके लिए तैयार रहना चाहिये। यदि तुम प्रबन्धकके रूपमें रहोगे तो मैं तुम्हें रख लूँगा। किन्तु ऐसा करनेपर मैं आशा करूँगा कि तुम उस कार्यमें निमग्न हो जाओगे और उसे यथासम्भव पूर्ण रूपसे संगठित करोगे।

मैं चाहूँगा कि तुम इस पत्रको गलत न समझो और विश्वास करो कि यह कदम इस कामके लिए सर्वोत्तम है। 'यंग इंडिया'का सम्पादकीय स्तर आज जैसा है उसे उससे ऊपर उठना चाहिए और इसके लिए अधिक सुयोग्य सहायककी आवश्यकता है।

हृदयसे तुम्हारा,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]

हादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई

 

१४६. पत्र : बर्माके एक मित्रको[१]

२९ जनवरी, १९२१

प्रिय मित्र,

मैं जानता हूँ कि मुझे आपसे बहुत-बहुत क्षमा-याचना करनी है, क्योंकि मैंने आपके बहुतसे पत्रोंका स्वयं उत्तर नहीं दिया। लेकिन आप मेरी कठिनाई तो जानते हैं। मैं महादेव देसाई या दूसरे देसाई, जो कृपापूर्वक मेरी सहायता करते रहे हैं, के जरिये उत्तर तो भेजता ही रहा हूँ।

अब शायद आप उन कठिनाइयोंके बारेमें मेरा कुछ लिखना आवश्यक नहीं मानेंगे जिनका उल्लेख आपने अपने पिछले पत्रोंमें किया था। यदि आपके मनमें अब भी कुछ शंकाएँ हों तो मैं वचन देता हूँ कि श्री जिन्नाको स्वराज्य सभाके[२] बारेमें मैंने जो व्यवस्था दी है उसके बिलकुल सही होनेके बारेमें मैं आपको पूर्ण रूपसे सन्तुष्ट कर दूँगा। मैंने उनके पत्रका जो उत्तर[३] दिया था, क्या आपने उसे देखा है?

क्या आप यह भी जानते हैं कि सभी आयुक्तोंने[४] कमसे-कम अपना दायित्व तो पूरा किया ही है, क्योंकि श्री जयकरने भी अपनी वकालत स्थगित कर दी है।

  1. नाम ज्ञात नहीं हुआ।
  2. होमरूल लीग।
  3. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ ३९४-९७ ।
  4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी पंजाब उप-समिति द्वारा पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें रिपोर्ट देनेके लिए नियुक्त जाँच समितिके सदस्य; देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १२८-३२२ ।