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भाषण : कलकत्तामें स्नातकोत्तर छात्रों और कानूनके विद्यार्थियोंकी सभामें

समस्त स्नातकोत्तर वर्गोंके छात्रोंसे, जो यहाँ अपने नेताओंके भाषण सुननेके लिए आये हुए हैं, निवेदन करता हूँ कि आप कांग्रेसके प्रस्तावपर[१], बल्कि उससे भी बढ़कर अपनी अन्तरात्मा की आवाज़पर अमल करें। यदि आपको पूरी तरह यह विश्वास हो गया है कि आप अपने आत्मसम्मानकी थोड़ी बहुत रक्षा करते हुए भी इस सरकारके शासनमें नहीं रह सकते, यदि आपको यह यकीन हो गया है कि इस सरकारने आपकी कुछ पुनीततम भावनाओंको पैरोंके नीचे रौंदा है, उसने हमारे कुछ अमूल्य और प्रिय अधिकारोंकी उपेक्षा की है तो आप भी कांग्रेसकी तरह इसी नतीजेपर पहुँचेंगे कि इस सरकारसे सरोकार रखना अपराध और पाप है। यदि आप इस विवारका समर्थन करते हैं तो फिर आज जो सरकार हमें प्राप्त है उसके प्रभावमें संचालित या स्वयं उसीके द्वारा दी जानेवाली शिक्षा स्वीकार करना असम्भव है। ड्यूक ऑफ कनॉट कल कलकत्ता आये थे और आपने देखा कि उनके आगमनपर कलकत्ताके महान नागरिकोंने क्या किया। उन्होंने पूरी-पूरी हड़ताल रखी। क्या आपका खयाल है कि मेरे जैसे आदमीके लिए, जिसने बराबर करीब ३० सालतक इस सरकारको स्वेच्छासे बिलकुल हार्दिक सहयोग दिया है, यह कोई खुशीकी बात है कि मैं उनके आगमनपर किये गये पूर्ण बहिष्कारमें हृदयसे और पूरी तरह साथ रहूँ? मैंने यह खुशीसे नहीं किया। किन्तु फिर भी मैं इसे अपना कर्त्तव्य समझता हूँ कि मैं स्वागतसे केवल अलग ही नहीं रहूँ बल्कि इस विचारका प्रचार भी करूँ कि आज सम्राट्के किसी प्रतिनिधिका स्वागत करना भूल है, अपराध है और हमारे आत्मसम्मानके विरुद्ध है। अभीतक मेरी राय यही बनी हुई है। ड्यूक ऑफ कनॉट आपके और मेरे आँसू पोंछने नहीं आये, इस्लामका और भारतके ७ करोड़ मुसलमानोंका जो अपमान किया गया है उसका निराकरण करनेके लिए नहीं आये, वे पंजाब के घावोंको अच्छा करनेके लिए नहीं आये, बल्कि वे उस सत्ताको अपना समर्थन देनेके लिए आये हैं जिसने अपनी शक्तिका इतना भयंकर दुरुपयोग किया। वे एक ऐसी संस्थाकी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए आये हैं जिसे हम मूलत: भ्रष्ट मानते हैं। इसी कारण उनके आगमनका बहिष्कार करना तथा उस सरकारके प्रभावके अन्तर्गत कोई भी शिक्षा न लेना हमारा कर्त्तव्य हो गया है। और इसलिए मैं कलकत्तके स्नातकोत्तर श्रेणीके आप छात्रोंसे यह कहता हूँ कि इससे तो यह ज्यादा अच्छा होगा कि आप अपनी पढ़ाई स्थगित कर दें, अपने करोड़ों देशवासियोंके दुःख-सुखमें साथ हो जायें और एक सालके भीतर स्वराज्य प्राप्त करें। यदि आप यह अनुभव करते हों कि आप इस सरकारकी अधीनतायें स्नातकोत्तर अध्ययन जारी रख कर इस महान देशमें स्वराज्यकी स्थापना करनेकी गति थोड़ी भी बढ़ा सकते हैं तो मुझे आपसे कुछ नहीं कहना है। लेकिन यदि मेरी तरह आपको भी यह विश्वास हो गया हो कि इस सरकारके संरक्षणमें अध्ययन जारी रखनेसे उद्देश्यकी ओर हमारी प्रगतिमें बाधा ही आ सकती है तो आप अपनी यह पढ़ाई बन्द कर देनेमें एक क्षणका भी विचार न करें।

  1. असहयोगके सम्बन्धमें उक्त प्रस्ताव दिसम्बर १९२० में नागपुरके कांग्रेस अधिवेशनमें पास किया गया था।