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कुछ प्रश्न

नहीं करवा पाया हूँ। मेरी मान्यता है कि पुरुषके विधुर होनेपर उसे पुनर्विवाह नहीं करना चाहिए। मेरी मान्यता है कि हमें केवल निरामिष भोजन ही करना चाहिए। मेरी धारणा है कि चेचकके टीके लगवाना दोषपूर्ण है। मैं मानता हूँ कि हमारे शौचादिकी पद्धतिमें कुछ बातोंसे रोग उत्पन्न होते हैं। लेकिन इन सब बातोंके सम्बन्धमें मैं अभीतक जनमतको प्रशिक्षित नहीं कर पाया हूँ, फलतः कांग्रेसमें भी इस आशयके प्रस्ताव पास नहीं करवा सकता। तथापि अवसर आने पर अपने उन विचारोंको जनताके सम्मुख पेश करनेमें मैं नहीं हिचकिचाता। 'मॉन्टेग्यु सुधार' अमृत-समान हैं, ऐसा अगर हिन्दने माना होता तो मेरी तानाशाही मेरी जेबमें ही रह जाती। जनताकी मनपसन्द चीजको मैंने व्यावहारिक रूप प्रदान किया है इसीसे जनताने मेरे सन्देशको हर्ष सहित स्वीकार किया है, ऐसी मेरी मान्यता है। मैं जनताको गलत राहपर नहीं लिये जा रहा हूँ बल्कि जनता जिस राहूपर चल रही है अगर वह गलत हो तो मैं भ्रमवश उसी राह चल पड़ा हूँ। अगर बात ऐसी हो तो मानना चाहिए कि मुझमें कार्यदक्षताकी कमी है। किन्तु मैं मानता हूँ कि जनता सीधी राह ही चल रही है और बहुत अच्छी रफ्तारसे आगे बढ़ी है। मालवीयजी यह कतई नहीं मानते कि मैं जनताको गलत राह ले जा रहा हूँ। इसमें सन्देह नहीं कि हमारे बीच थोड़ा मतभेद है लेकिन वे असहयोगके पुजारी हैं और मानते हैं कि जनता इस दिशामें आगे बढ़ रही है।

नवीन राज्यतंत्रको मैं नहीं, जनता चलायेगी

जैसा कि लोकमान्य तिलक कहा करते थे, अगर आप स्वराज्य प्राप्तिके बाद हिमालयकी तलहटीमें जा बसेंगे तो फिर नवीन राज्यतन्त्रका क्या होगा? उसे कौन चलायेगा? सगे भाइयोंमें नहीं बनती फिर करोड़ोंका तो पूछना ही क्या?

यह प्रश्न भी दोषमय है। लोकमान्यने मेरे हिमालय जानेके विषयमें कभी कुछ कहा ही नहीं। स्वराज्य मिलनेपर मैंने हिमालय चले जानेका निश्चय नहीं किया है; फिर भी यह बात निश्चित है कि नवीन राज्यतंत्रको चलानेवाला भी मैं नहीं हूँ, उसको तो जनता चलायेगी। जबतक जनतामें इतना आत्मविश्वास नहीं आ जाता तबतक स्वराज्य मिलनेसे भी क्या लाभ?

राजनीति और धर्म

श्री एन॰ बी॰ शर्माके कथनानुसार क्या आप राजनीतिमें धर्मका सम्मिश्रण नहीं करे वे रहे हैं? राजनीति क्या महात्माओंका क्षेत्र हो सकती है? चूँकि आपने आफ्रिका और खेड़ामें थोड़ेसे लोगोंको कुछ अधिकार दिला दिये तो क्या करोड़ोंके लिए भी आप ऐसा ही कर सकेंगे?

इसमें सन्देह नहीं कि मैं राजनीतिक विषयोंमें धर्मका सम्मिश्रण करता हूँ। मेरी विनम्र राय यह है कि संसारकी एक भी क्रिया धर्मविहीन नहीं होनी चाहिए। सवाल है कि महात्माके लिए कौनसा क्षेत्र नहीं हो सकता। यदि वह सब तरहके दुःखोंमें भाग नहीं लेता तो फिर वह किस बातका महात्मा है? मैं लोगोंके सारे दुःखोंमें

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