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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हाथ नहीं बँटा पाता इसलिए मैं 'महात्मा' होनेका दावा ही नहीं करता। लेकिन हम सब महात्मा बनेका प्रयत्न करें इसमें अविवेक नहीं है। अपनी राजनीतिमें हमने धर्मके तत्त्वका समावेश नहीं किया इसीसे तो स्वराज्य मिलनेमें इतना समय लग रहा है। विधान ऐसा है कि जो बात एक व्यक्तिपर लागू होती है वही सबपर भी लागू होती है। जिस तरीकेसे खेड़ामें लड़ा जा सकता है उसी तरीकेसे भारतवर्षमें भी लड़ा जा सकता है और जीत भी हासिल की जा सकती है।

अहमदाबादमें आपने कहा था कि यदि एक व्यक्ति भी सम्पूर्ण असहकार करे तो उसका असर हो और स्वराज्य मिले। क्या यह ठीक है?

मेरा दृढ़ विश्वास है कि सचमुच सम्पूर्णताको प्राप्त एक असहयोगी भी यथेष्ट है। लेकिन मैं मानता हूँ कि मेरे-जैसे प्रयत्न करनेवालेका प्रभाव भी बहुत हो सकता है। जगतके प्रत्येक सुधारका बीज किसी एक ही व्यक्तिका बोया हुआ होता है।

अपने कालसे पूर्व कोई नहीं जनमता

लोकमान्य तिलकके समान ही क्या आप भी समयसे पहले पैदा नहीं हुए हैं?

कोई अपने समयसे पहले न तो आता है और न जाता है। परन्तु ऐसा एहसास संसारके सभी सुधारकोंके बारेमें हुआ करता है। एक पद्धतिके अनुसार चलते आ रहे हम लोगोंको जब कोई दूसरी पद्धतिके बारेमें बताया जाता है तब पहले-पहल तो आघात ही पहुँचता है।

मुसलमानोंको मैंने नहीं जगाया है

मुसलमानोंको खिलाफतके सम्बन्धमें कुछ भी महसूस नहीं होता। आपने ही उन्हें कोंच-कोंच कर जगाया है। क्या मुसलमान विधान परिषदोंके उम्मीदवारके रूपमें खड़े नहीं हुए? क्या श्री शफी वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्में नहीं हैं? क्या धनवान और पढ़े-लिखे मुसलमान आपके आन्दोलनमें भाग लेते हैं?

मैंने मुसलमानोंको जगाया है, ऐसा दावा मैं कदापि नहीं कर सकता। उनको जगानेवाले तो अलीभाई हैं। मैंने तो अपना धर्म जानकर उन्हें अपनी सहायता दी है। पढ़े-लिखे मुसलमान अच्छे-बुरेकी बुद्धि खो बैठे हैं, इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं। यह तो इस जमानेकी तासीर है। आम मुसलमान अली भाइयोंके साथ ही हैं। श्री शफी आदि जैसे मुसलमान और हिन्दू मूच्छितावस्थामें न हों तो आज जो हमें इतनी देर हो रही है वह कभी न होती।

अच्छे कार्यमें कभी असफलता नहीं मिलती

क्या आपका आन्दोलन अव्यावहारिक अथवा अशक्य नहीं है? आपने मद्रासमें कहा था कि यदि जनताकी ओरसे सन्तोषजनक जवाब न मिला तो आन्दोलन निष्फल भी हो सकता है। तो फिर जिन्होंने आपका समर्थन किया है उनका क्या