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कुछ प्रश्न

होगा? सारे हिन्दुस्तानका इससे कितना बड़ा नुकसान होगा? सत्याग्रहकी भाँति इसे भी बीचमें छोड़कर आप अपने वचनके अनुसार हिमालय-वास क्यों नहीं करते?

आन्दोलन अव्यावहारिक नहीं है यह बात दिन-प्रति-दिन सिद्ध होती जाती है। सीधी राह पहले-पहल कदाचित् अगम्य जान पड़े, फिर भी वह अव्यावहारिक तो नहीं ही होती। संसारमें सत्य-जैसी दूसरी कोई व्यावहारिक चीज नहीं है। [दो बिन्दुओके बीच] सरल रेखासे छोटी दूसरी कोई रेखा आजतक संसारमें कोई भी नहीं खींच पाया है। मद्रासके मेरे सम्पूर्ण भाषणको पढ़ना चाहिए। मेरे कहे हुए वाक्यका अर्थ सिर्फ इतना ही निकलता है कि सन्तोषजनक प्रतिक्रिया न होनेपर जनताको आन्दोलनके निष्फल होनेका आभास मिलेगा; लेकिन अच्छे कार्योंमें असफलता नामकी कोई चीज होती ही नहीं। कार्यके अनुरूप फल अवश्य मिलता है। लेकिन सम्भव है कि किसी एक व्यक्तिके द्वारा किये गये कार्यका फल जनताको दिखाई न दे। जिसे जनता भी देख सके ऐसे फलके लिए बहुत-से व्यक्तियोंको आगे आकर वह कार्य करना चाहिए। यों जो कर्म करता है उसे तो फलकी पूर्ण उपलब्धि हुई ही समझिए। जिन्होंने पढ़ना छोड़ दिया है, वकालत छोड़ दी है उन्हें उसका पुण्य-फल मिल चुका है। आन्दोलनका चाहे जो परिणाम निकले, उससे इन्हें क्या कोई नुकसान हो सकता है? अलबत्ता अगर अपने उक्त धन्धे छोड़नेका उन्हें पश्चात्ताप हो तो यह सचमुच दुःखकी बात होगी। इसीसे मेरा हमेशा यही कहना रहा है कि त्याग वैराग्यके बिना नहीं टिक सकता। जो लोग इस सरकारसे बिलकुल ऊब नहीं गये हैं उन्हें मैंने असहयोग करनेकी सलाह दी ही नहीं है। यह आन्दोलन पवित्र है क्योंकि इसे एक अकेला व्यक्ति भी कर सकता है। पुण्यकर्म करते समय न तो रुकनेकी जरूरत है और न ही साथी ढूँढ़नेकी; पापकर्म करते समय हजार ज्योतिषियोंसे पूछा जाना चाहिए और हजार साथियोंकी तलाश करनी चाहिए और समय तथा साथीके मिलनेपर भी [पापकर्म करते हुए] हिचकना चाहिए। असहयोगसे जैसे एक व्यक्तिको कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा, वैसे ही हिन्दुस्तानके बारेमें भी समझना चाहिए। सत्याग्रहको मैंने बीचमें नहीं छोड़ा। उसने एक अन्य रूप ग्रहण कर लिया। सत्याग्रहके कानूनके सविनय अवज्ञाके रूपको, लोग ग्रहण नहीं कर सके इसीसे सत्याग्रह अपने उस रूपमें बन्द हो गया।[१] सत्याग्रहके परिणामस्वरूप हिन्दुस्तानको जबर्दस्त उपलब्धि हुई है, ऐसा मैं मानता हूँ। मेरा दृढ़ विश्वास है कि कानूनकी सविनय अवज्ञाको रोककर मैंने सत्याग्रहके सम्बन्धमें अपने ज्ञानको सिद्ध किया है; मैंने सत्याग्रहके नायकके रूपमें अपनी योग्यता ही दिखाई है। मेरे सविनय अवज्ञाके आन्दोलनको रोकनेके कारण ही, सर माइकेल ओ'डायर द्वारा पंजाबकी प्रतिष्ठाको धूलमें मिलानेके निश्वयके बावजूद पंजाबकी प्रतिष्ठा बढ़ी है। यही बात मेरे हिमालय जानेके बारेमें भी चरितार्थ होती है। मेरी दृढ़ मान्यता है कि पश्चिमका पशुबल हिन्दुस्तानको नहीं रुचेगा——नहीं फलेगा। तथापि कल्पना करें कि हिन्दुस्तानने उसे स्वीकार कर लिया तो फिर मैं हिन्दुस्तानमें रहना निरर्थक मानूँगा और उस समय

  1. १९१९ में; देखिए खण्ड १५ ।