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९. हिन्दुओं और मुसलमानोंसे

मुझे पता चला है कि मेरे महमदाबादके[१]भाषणपर[२]लोगोंमें मतभेद पैदा हो गया है। भाषणसे सम्बद्ध वह भाग मैंने यह लेख लिखते समय ही पढ़ा है। उसमें मुझे एक ही महत्त्वपूर्ण भूल दिखाई दी है। ‘साधु मुझसे मिले’ ऐसा मेरे भाषणकी रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ है। मुझे ऐसा कहनेकी याद नहीं आती; लेकिन सम्भव है मैंने ऐसा कह दिया हो। साधु मुझसे बिलकुल नहीं मिले। अपनी इस भूलके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ। तथ्य इस प्रकार है: मेरे पास उनके भेजे हुए दो व्यक्ति आये और उन्होंने मुझसे कहा कि साधुने मुझे बुलाया है। उस समयतक मुझे हकीकतका[३]पूरा पता चल गया था। मैंने कहा कि जानेके लिए तो मेरे पास समय ही नहीं है; फिर भी यदि साधु यहाँ आयें तो मैं उनसे अवश्य मिलूँगा। इसके अतिरिक्त मैंने यह भी कहलाया कि उन्होंने साधुके वेशमें एक ऐसा कार्य किया है जो मेरी समझमें साधुको शोभा नहीं देता। इसलिए अगर आप साधुके वेशको त्यागकर ही यहाँ आयें तो अच्छा होगा। साधुओंसे में दया और निर्भयतापूर्ण व्यवहारकी आशा रखता हूँ। उनसे मैं यह उम्मीद नहीं करता कि वे हिन्दुओंके आन्तरिक झगड़ोंमें किसी मुसलमानको बीचमें डालें, जिस तरह इन साधु महोदयने एक मौलवीको बीचमें डाला है। मैं देखता हूँ कि मेरे इस सन्देशसे ही लोगोंमें खलबली मच गई है। तथापि मैं अपने इस सन्देश और भाषणपर पूर्ववत् कायम हूँ। बकरेको लेकर जो घटना हुई उसे मैं गम्भीर मानता हूँ। यह हमारा सौभाग्य है कि उसका कोई बुरा परिणाम नहीं निकला। अनेक निर्दोष जीवोंकी रक्षा करना निस्सन्देह साधुका स्पष्ट कर्त्तव्य है। लेकिन साधुको अपनी साधुतासे, तपश्चर्या से ही ऐसा करनेका अधिकार है। साधु शरीर-बलसे अथवा शरीरबलके प्रयोगकी धमकी देकर जीवोंकी रक्षा नहीं कर सकते। इसके अलावा अपने धर्मके झगड़े में मुसलमानोंके बलका उपयोग भी नहीं किया जा सकता। यदि मुसलमानोंके दो दल परस्पर एक-दूसरेसे झगड़ा करें तो उसमें हिन्दू किसी एकका पक्ष लेकर दूसरेको कैसे दबा सकते हैं? यदि दबायें तो यह हिन्दुओंके लिए शर्मकी, और [मुसलमान] दब जायें तो उनके लिए डूब मरनेकी बात होगी। जिस तरह हमने अपने दुनियावी झगड़ोंमें अंग्रेजोंको मध्यस्थ बनाकर अपना राज्य खो दिया, उसी तरह यदि अपने धर्मके आन्तरिक झगड़ोंमें मुसलमान हिन्दुओंको और हिन्दू मुसलमानोंको मध्यस्थ बनायें तो दोनों अपने-अपने धर्मोसे च्युत हो जायेंगे। बकरेकी बलि देनेवाला

  1. गुजरातके खेड़ा जिलेका एक शहर।
  2. लोदेखिए खण्ड १८, पृष्ठ ४२९-३३।
  3. कुछ हिन्दू बकरेकी बलि देना चाहते थे जब कि कुछ अन्य हिन्दू इसके विरुद्ध थे। अतः इस बलिको रोकनेके लिए उपर्युक्त साधुने मुसलमानोंकी सहायता ली थी।