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हिन्दुओं और मुसलमानोंसे

हिन्दू, मुसलमानकी सहायता से अन्य हिन्दुओंकी इच्छाके विरुद्ध बकरेकी बलि दे तो अन्य हिन्दुओंकी क्या गति होगी?

हम हिन्दू-मुसलमानोंके बीच सच्चे भाईचारेकी भावनाको जन्म देना चाहते हैं, अहमदाबादकी इस घटनासे उसमें बाधा उत्पन्न हुई हो, ऐसी मेरी मान्यता है। आज इस बाधाका प्रभाव नगण्य भले ही है, लेकिन मैंने यह सोचकर कि कहीं इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि न हो हिन्दू-मुसलमान, दोनोंको ही चेतावनी दी है।

अब मौलवीके सम्बन्धमें। उन्हें तो मैंने पाखण्डी ही माना है। मुझसे उन्होंने जो-कुछ कहा था उसमें और कुछ मुसलमान भाइयोंके नाम वितरित पत्रिकामें लिखी गई बातोंमें बड़ा अन्तर है। उसमें मौलवीके साथ जिन बातोंके होनेका उल्लेख है वे एकदम बनावटी हैं। मेरे कहनेका अभिप्राय इतना ही है कि उस मौलवीने मेरे नामका दुरुपयोग किया है। उन्हें अथवा किसी अन्य व्यक्तिको अहमदाबादसे निकानेका मुझे क्या अधिकार है? लेकिन उस मौलवीने तो मुझसे यह कहा था कि में उसके लिए एक बुजुर्गके जैसा हूँ, इसीसे मैंने उन्हें सलाह दी थी कि अगर मेरा कहा मानें तो आप अहमदाबादसे चले जायें। उन्हें अथवा किसी भी मुसलमानको खिलाफत समिति अथवा मेरे नामसे हमारी अनुमति के बिना कार्य करनेका कदापि अधिकार नहीं है। इस मोलवीपर मेरा तो तनिक भी विश्वास नहीं है। उनके पास खिलाफत समितिकी ओरसे दिया गया कोई अधिकार पत्र नहीं है। इसलिए प्रत्येक मुसलमानको मेरी यह सलाह है कि उस मोलवी अथवा किसी भी ऐसे व्यक्तिकी, जिसके पास खिलाफत समितिकी ओरसे दिया गया अधिकार-पत्र नहीं है, बात नहीं सुननी चाहिए।

मुसलमान खिलाफतका कठिन कार्य और हिन्दू-मुसलमान स्वराज्यका महान् कार्य तबतक नहीं कर सकते जबतक कि दोनों निर्भय, साहसी, स्वार्थ-त्यागी और ईमानदार नहीं बनते। इसीलिए उन्हें हमेशा सावधानीसे चलनेकी आवश्यकता है। महान् संघर्षों में पाखण्डपूर्ण कार्य भी साथ-साथ होते रहते हैं। हमारा कर्त्तव्य है कि हम इनके प्रति सतर्क रहें।

[गुजराती से]

नवजीवन, २१-११-१९२०