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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सरकारको लगभग ३० वर्षतक निरन्तर निष्ठापूर्वक स्वयंस्फूर्त सहयोग दिया है, क्योंकि मेरा पक्का विश्वास था कि मेरे देशको इसी मार्गपर चलनेसे स्वतन्त्रता मिलेगी। इसलिए मैंने अपने देशवासियोंको श्रीमान्‌के स्वागतमें कोई भाग न लेनेकी जो सलाह दी है वह मेरे लिए कोई छोटी बात नहीं है। हममें से किसीको भी एक अंग्रेज सज्जनके रूपमें आपके विरुद्ध कोई भी शिकायत नहीं है। हमें जैसी अपने किसी प्रियसे प्रिय मित्रकी सुरक्षाकी चिन्ता हो सकती है वैसी ही आपके शरीरकी भी है। अगर आपके जीवनपर कोई खतरा हो और मेरे किसी भी मित्रको उसका पता चल जाये तो मैं जानता हूँ कि वह अपने प्राण देकर भी आपकी रक्षा करेगा।

हमारी लड़ाई अंग्रेजोंसे व्यक्तिशः नहीं है। हम अंग्रेजोंको मारना नहीं चाहते। हाँ, हम उस प्रणालीको अवश्य नष्ट करना चाहते हैं जिसने हमारे देशवासियोंके शरीर, मन और आत्माको दुर्बल बना दिया है। हमने अंग्रेजोंके स्वभावमें निहित उस तत्त्वके विरुद्ध लड़ता तय किया है जिससे पंजाबमें ओ'डायरशाही और डायरशाही सम्भव हुई हैं और जिसके कारण इस्लामका मनमाना अपमान किया गया है——उस इस्लामका जो मेरे ७ करोड़ देशवासियोंका धर्म है। अंग्रेज अपने आपको उत्कृष्ट और प्रभुताशाली समझते हैं। इसीलिए अनेक महत्वपूर्ण मामलोंमें भारतके ३० करोड़ निरपराध लोगोंकी भावनाओंकी संयोजित रूपसे उपेक्षा की गई है। अब हम इस भावनाको सहन करनेकी बातको अपने आत्मसम्मानके विरुद्ध समझते हैं। यह हमारे लिए बहुत अपमानजनक है। आपको भी इस बातपर कोई गर्व नहीं हो सकता कि भारतको ३० करोड़ लोग चौबीसों घंटे एक लाख अंग्रेजोंसे प्राण-भय मानते हुए उनकी गुलामी करते रहें।

श्रीमान् उस प्रणालीको जिसका उल्लेख मैंने किया है, समाप्त करनेके लिए नहीं आए हैं, बल्कि उसकी प्रतिष्ठाको बल देकर उसे कायम रखनेके लिए पधारे हैं। आपकी पहली ही घोषणा लॉर्ड विलिंग्डनकी प्रशंसासे भरी पड़ी है। मुझे उन्हें जाननेका सौभाग्य प्राप्त है। मैं उन्हें एक ईमानदार, मृदुल स्वभावका सज्जन मानता हूँ। वे अपनी इच्छासे छोटेसे-छोटे प्राणीको भी चोट नहीं पहुँचाना चाहते; किन्तु एक शासकके रूपमें वे निश्चय ही असफल हुए हैं। वे उन लोगोंके इशारेपर चले हैं, जिनका हित अपनी सत्ताको मजबूत करनेमें है। द्रविड़ लोग क्या चाहते हैं सो वे समझ नहीं पा रहे हैं; और यहाँ बंगालमें आप एक ऐसे गवर्नरको[१] योग्यताका प्रमाण-पत्र दे रहे हैं जो एक आदरणीय सज्जन तो सुने जाते हैं, लेकिन जो बंगालके लोगोंके हृदय तथा उनकी आकांक्षाओंको बिलकुल नहीं जानते। बंगाल, कलकत्ता नहीं है; कलकत्तेका फोर्ट विलियम तथा उसके अन्य विशाल भवन, उस सुन्दर प्रान्तके सीधे-सादे और अत्यन्त संस्कृत किसानोंके हृदयहीन शोषणके द्योतक हैं।

असहयोगियोंने यही निष्कर्ष निकाला है कि वे ऐसे सुधारोंके धोखेमें नहीं आ सकते जिनमें भारतके संकट और अपमानके प्रश्नोंपर गहराईसे विचार नहीं किया गया हो। वे इस नतीजेपर भी पहुँचे हैं कि अधीर और रुष्ट होना भी ठीक नहीं

  1. लॉर्ड रोनाल्डशे।