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पत्र : ड्यूक ऑफ कनॉटको

है। और न हमें अधीरता और रोषके वशीभूत होकर मूर्खतापूर्ण हिंसाका आश्रय लेना है। हम पूरी तरह स्वीकार करते हैं कि वर्तमान स्थितिके लिए हम भी एक हदतक दोषी हैं। हमारी गुलामीमें अंग्रेजोंकी तोपोंका उतना हाथ नहीं है जितना हमारा अपनी इच्छासे दिये हुए सहयोगका है।

इस प्रकार आपके हार्दिक स्वागतमें हम जो हिस्सा नहीं ले रहे हैं वह किसी भी अर्थमें आपके महान व्यक्तित्वके विरुद्ध प्रदर्शन नहीं है; बल्कि वह तो उस प्रणालोके विरुद्ध किया गया प्रदर्शन है जिसको बल देनेके लिए आप आये हुए हैं। मैं जानता हूँ कि इक्के-दुक्के अंग्रेज यदि चाहें भी तो अंग्रेजोंके स्वभावको एकाएक नहीं बदल सकते। यदि हम अंग्रेजोंकी बराबरीका दर्जा हासिल करना चाहते हैं तो हमें अपने दिलोंसे डर निकाल देना होगा। हमें उस सरकारके संरक्षणमें चलनेवाली शालाओं और अदालतोंसे अलग रह कर अपना काम चलानेकी सूरत निकाल लेनी चाहिए जिसे, यदि वह सुधरती नहीं है तो, हम नष्ट कर देनेपर तुले हुए है।

यह अहिंसात्मक असहयोग इसी कारण आरम्भ किया गया है। मैं जानता हूँ कि अभी हममें से सभी वाणी और कर्ममें अहिंसक नहीं बने हैं, लेकिन अभीतक जो-कुछ किया जा चुका है वह आश्चर्यजनक है, इसका विश्वास मैं श्रीमान्‌को दिलाता हूँ। लोग अहिंसाके रहस्य तथा मूल्यको खूब समझ गये हैं जैसा कि पहले कभी नहीं हुआ था। जो भी चाहे यह देख सकता है कि यह आन्दोलन एक धार्मिक और शुद्धिका आन्दोलन है। हम मद्यपान छोड़ रहे हैं। हम भारतको अस्पृश्यताके अभिशापसे मुक्त करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। हम विदेशोंसे आई भड़कीली चमक-दमकको छोड़नेका प्रयत्न कर रहे हैं और एक बार फिरसे चरखेका आश्रय लेकर भारतकी प्राचीन और सरस जीवन पद्धतिको पुनरुज्जीवित कर रहे हैं। हमें आशा है कि हम इस प्रकार वर्तमान हानिकर संस्थाओंको नष्ट कर सकेंगे।

मेरा सादर निवेदन है कि श्रीमान् एक अंग्रेजकी हैसियतसे इस आन्दोलनका अध्ययन करें और यह देखें कि इसमें साम्राज्य और संसारकी कितनी भलाईकी सम्भाबनाऐं निहित हैं। संसारमें जो भी अच्छी बातें हैं उनमें से किसीसे भी हमारा विरोध नहीं है। हम जिस ढंगसे इस्लामकी रक्षा कर रहे हैं उससे सब धर्मोकी रक्षा होती है। हम भारतके सम्मानकी रक्षा करके मानव-जातिके सम्मानकी रक्षा कर रहे हैं, क्योंकि हमारे साधन किसीके लिए भी हानिकर नहीं है। हम अंग्रेजों से मित्रता रखना चाहते हैं; किन्तु वह मित्रता सिद्धान्त और व्यवहार दोनोंमें ऐसी होनी चाहिए जैसी दो बराबरके पक्षोंमें होती है और जबतक यह उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तबतक हमें असहयोग अर्थात् आत्मशुद्धिकी क्रिया जारी रखनी चाहिए। मैं श्रीमान्से और उनकी मारफत हर अंग्रेजसे प्रार्थना करता हूँ कि वे असहयोगके दृष्टिकोणको समझें।

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९–२–१९२१