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१५४. टिप्पणियाँ

स्वराज्य सभा

पुनर्गठनके प्रसंगमें यह सवाल किया गया है कि स्वराज्य सभाओं और होमरूल लोगों वगैरहका क्या होगा। मेरी रायमें इन सभाओंकी कार्रवाइयोंका उद्देश्य फिलहाल तो स्वराज्य ही होना चाहिए।

धीरजकी जरूरत

जिस ढंगके संगठनकी रूपरेखा मैंने तैयार की है उसके लिए काफी धैर्यकी जरूरत है। मुझे मालूम हुआ है कि बिहारके कुछ कार्यकर्त्ताओंने जोशमें आकर कीमतें घटानेके लिए वहाँके दुकानदारोंको धमकाना शुरू कर दिया है और यह भी पता चला है कि इसके लिए मेरे नामका इस्तेमाल किया गया है। ऐसी जोर-जबरदस्ती तो, जिस उद्देश्यके लिए हम काम कर रहे हैं, उसीको नुकसान पहुँचानेवाली होगी। अगर दुकानदार बेईमानी कर रहे हैं तो हमें उन्हें समझाना चाहिए; इसपर भी अगर वे न मानें तो सस्ता अनाज देनेके लिए हमें राष्ट्रीय दुकानें खोलनी चाहिए। असलियत तो यह है कि गल्लेके व्यापारियोंकी तादाद इतनी ज्यादा है कि वे आसानीसे ऊँची कोमतें नहीं ले सकते। जो भी हो, गल्ला-व्यापारियोंको सुधारना भी जरूरी है। अपने धन्धेमें ईमानदारी बरतने और देशका खयाल रखनेके लिए उन्हें प्रेरित किया जाना चाहिए।

बिहारमें जागृति

लेकिन जब बड़े पैमानेपर जागृति होती है तो कभी-कभी ऐसी ज्यादतियाँ भी हो ही जाती हैं। यह खुशीकी बात है कि वहाँके नेताओंने तुरन्त स्थितिको सँभाल लिया और जिन लोगोंका इस घटनासे सीधा सम्बन्ध था उन्हें छोड़कर दूसरोंको इसके बारेमें शायद कोई पता ही नहीं चला। बिहारमें खामोशीके साथ, लेकिन अच्छी तरह से संगठनका काम हो रहा है। बाबू राजेन्द्रप्रसाद वहाँ एक राष्ट्रीय कालेजके[१] प्रधानाचार्य बन गये हैं। उस कालेजमें कुछ बहुत काबिल प्राध्यापक भी हैं। उनकी यह संस्था अच्छी तरक्की कर रही है। जो प्राध्यापक वहाँ हैं, वे राजी-खुशीसे आये हैं और सिर्फ गुजर-बसर-भरकी तनख्वाह लेते हैं।

धरना देना

कलकत्ताके कुछ विद्यार्थियोंने धरना देनेका पुराना जंगली तरीका अख्तियार किया है। खुशीकी बात है कि यह तरीका शुरू होते ही बन्द कर दिया गया। उन्होंने अपने साथियोंका, जो विश्वविद्यालयमें फीस जमा करनेके लिए या शिक्षा विभागके किसी

  1. यह कालेज पटनामें खुला था।