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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ज्यादासे-ज्यादा लोग समझते हैं, उस भाषामें बोले बिना हमारी सबसे बड़ी मजलिस आमजनताके सामने कोई जीती-जागती मिसाल पेश नहीं कर सकती। मद्रासियोंकी मुश्किल मुझे खूब अच्छी तरह मालूम है, पर मैं यह भी जानता हूँ कि मातृभूमिके प्रति उनके प्रेमपूर्ण अध्यवसायके आगे कोई बाधा, कोई मुश्किल टिक नहीं सकती।

अंग्रेजीका स्थान

हिन्दुस्तानी सीखनेके साथ-साथ मैंने विद्यार्थियोंको यह सलाह भी दी है कि नीची स्थितिसे बराबरीका दर्जा हासिल करने, विदेशी हुकूमतसे निकलकर स्वराज्य प्राप्त करने, असहायताकी स्थितिसे उभरकर आत्मनिर्भर बननेके इस संक्रातिकालमें वे अंग्रेजी पढ़ना बन्द कर दें। अगर हम कांग्रेसके अगले अधिवेशनसे पहले स्वराज्य पा लेना चाहते हैं तो हमें इस बातके मुमकिन होनेका भरोसा करना ही चाहिए और इस लक्ष्यतक पहुँचनेकी जितनी कोशिश कर सकते हैं, करनी चाहिए; और ऐसा तो कुछ भी नहीं करना चाहिए जो हमें इस लक्ष्यकी ओर न ले जाये और उल्टे मार्गमेंररोड़े अटकाये। इस समय अंग्रेजी सीखनेसे हम अपने लक्ष्यके करीब नहीं पहुँच सकते, उलटे उससे दूर ही हटेंगे और दूर हटनेका खतरा ही अधिक है, क्योंकि इस बातपर विश्वास करनेवाले बहुतसे लोग हैं कि अंग्रेजी शब्दोंकी मधुर झंकार कानमें गूँजे बिना और उसकी मीठी लय ओठोंसे निकले बिना हममें स्वराज्यकी भावना आ ही नहीं सकती। यह मूढ़ता है। अगर इसे सच मान लिया जाये तब तो स्वराज्य हमारे लिए आसमानका तारा ही रहेगा। अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारकी भाषा है, वह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धोंकी, कूटनीतिकी भाषा है, उसके साहित्यका भण्डार बड़ा ही सम्पन्न है, उसके द्वारा हमें पश्चिमी विचारों और सभ्यताकी जानकारी प्राप्त होती है। इसलिए हममें से थोड़े-से लोगोंके लिए अंग्रेजीका ज्ञान जरूरी है। ये लोग राष्ट्रीय व्यापार और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धोंको चला सकते हैं और देशको पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान और साहित्य एवं विचारोंकी श्रेष्ठतम उपलब्धियोंका ज्ञान करा सकते हैं। यही अंग्रेजीका उचित उपयोग होगा। मगर आज तो उसने हमारे मन-मन्दिरमें सबसे ऊँचा स्थान बना रखा है, और मातृभाषाओंको उनके उचित स्थानसे च्युत कर दिया है। अंग्रेजोंके साथ हमारा बराबरीका रिश्ता न होने की वजहसे अंग्रेजीको दी गई यह इज्जत बनावटी है। अंग्रेजीकी जानकारीके बिना भी भारतवासीकी बुद्धिका ऊँचेसे-ऊँचा विकास सम्भव होना चाहिए। अपने लड़के-लड़कियोंको यह सोचने के लिए बढ़ावा देना कि अंग्रेजीके ज्ञानके बिना समाजके सबसे ऊँचे तबकेमें उनकी पहुँच हो ही नहीं सकती, देशके पुरुषत्व और खास तौरपर नारीत्वके साथ हिंसाका व्यवहार करना है। यह विचार घोर लज्जाजनक और बर्दाश्त के बाहर है। अंग्रेजीके व्यामोहसे छुटकारा पाना स्वराज्यकी एक जरूरी शर्त है।

मेरे 'पक्के साथी'

कमाण्डर वैजवुडने 'नेशन' में जो लेख लिखा है, उसमें उन्होंने स्वयं अपने प्रति न्याय नहीं किया है। मेरा खयाल है कि उन्होंने तथ्यों और व्यक्तियोंकी सही जानकारी