पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/३४९

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हासिल किये बिना ही वह लेख लिखा है। मेरे बारेमें उन्होंने जो गलत और अयथार्थ बातें लिखी हैं, उनके सम्बन्धमें मुझे कुछ नहीं कहना है; परन्तु मौलाना शौकत अलीके बारेमें वैजवुड साहबका अज्ञान सचमुच विस्मयकारी है। वे मौलाना शौकत अलीकी आत्मशक्तिके गुरको बिलकुल ही नहीं समझते। मुझे जिन ईमानदारसे-ईमानदार लोगोंसे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त है, उनमें एक मौलाना साहब भी हैं। मैं मान ही नहीं सकता कि वे अंग्रेजों या किसीसे भी नफरत करते हैं। यह तो जरूर है कि वे अपने मजहबको अपनी जिन्दगीसे भी ज्यादा चाहते हैं। अहिंसामें वे विश्वास करते हैं, हालाँकि हिंसापर भी उनका उतना ही विश्वास है। खिलाफतके मामलेमें अगर वे अहिंसाके जरिये सम्मानपूर्ण समझौता न करा सके, और अगर उन्हें ऐसा लगा कि हिंसाके रास्तेपर चलकर वे अपने लोगोंका ज्यादा अच्छा और उपयोगी नेतृत्व कर सकते हैं, तो उन्हें वैसा करनेमें कोई हिचकिचाहट न होगी। और उनकी रायमें कभी हिंसाका सहारा लेना जरूरी हो ही गया तो वह भी इस तरह लिया जायेगा कि उसपर दुनियावाले किसी तरह उँगली नहीं उठा सकेंगे। अहिंसामें उनका विश्वास बिलकुल सतही ढंगका नहीं है; इतना ही नहीं, उन्होंने इसकी प्रेरणा पैगम्बर साहबकी जिन्दगीसे ग्रहण की है। जबतक अपना उद्देश्य अहिंसात्मक उपायोंसे हासिल होता दिखाई देगा वे हिंसाका सहारा न लेनेके धार्मिक आदेशसे बँधे हुए हैं। लेकिन वैजवुड साहबके लेखको पढ़नेसे यही मालूम पड़ता है कि मौलाना शौकत अली मानो खूनके प्यासे ही हों। कर्तल वैजवुड इतना तो जरूर ही जानते होंगे कि हिंसामें विश्वास करते हुए भी एक सैनिक दया, करुणा और उदारता आदि मानवीय गुणोंसे शून्य नहीं होता। मैं उन्हें यकीन दिलाता हूँ कि मौलाना साहब उतने ही अच्छे और दिलेर सैनिक हैं जितने कि खुद कर्नल साहब। मैंने यह जवाब देना इसलिए जरूरी समझा कि अंग्रेज लोग कहीं अली-बन्धुओं और भारतीय मुसलमानोंके दृष्टिकोणको गलत न समझ बैठें। अली-बन्धुओंने अपने-आपको, अपने मजहबवालोंको एक ऐसे समयमें, जब उनके जोशमें बहक जानकी हर सम्भावना थी, संयमित रखकर मानवताकी बड़ी भारी सेवा की है। उनके इस अद्भुत आत्मसंयमसे इस बातका बहुत अच्छी तरह पता चल जाता है कि धर्ममें उनका विश्वास कितना गहरा और पक्का है। मुझे यह देखकर बड़ा दुःख होता है कि कर्नल वैजवुड-जैसे अंग्रेज भी बगैर सोचे-समझे ऐसी धारणा बना लिया करते हैं——ऐसी राय जाहिर कर बैठते हैं। अंग्रेज लोगोंका घटनाओं और तथ्योंको उनके असली रूपमें देखने-समझनेसे इस तरह इनकार करना शान्तिपूर्ण समझौतिकी राहमें सबसे बड़ी बाधा पहुँचाता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २–२–१९२१
 
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