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१०. स्वराज्यकी शर्तें और अस्पृश्यता

गुजरात विद्यापीठके एक निर्दोष प्रस्तावसे अहमदाबाद, बम्बई आदि स्थानोंपर खलबली मच गई है।[१] विद्यापीठने जो प्रस्ताव पास किया है उसके अनुसार किसी भी ऐसी पाठशालाको मान्यता नहीं दी जायेगी जिसमें अन्त्यजोंको प्रवेशका निषेध होगा। यह प्रस्ताव विद्यापीठके सिद्धान्तके अनुसार ही पास किया गय। तथापि इस प्रस्तावसे अनेक हिन्दुओंके दिलोंको ठेस पहुँची है और उनमें से कुछ-एक लोग कह रहे हैं कि मुझे इस बातकी चर्चा ही नहीं करनी चाहिए थी। कुछ लोगोंका कहना है कि अस्पृश्यता सम्बन्धी मेरे विचार मेरे हिन्दुत्वको बट्टा लगाते हैं। अन्य कितने ही लोग मेरे इन विचारोंके कारण मेरे कट्टर सनातनी होनेके दावेको रद हो गया मानते हैं। मैं अपने आपको कट्टर सनातनी क्योंकर मानता हूँ उसके कारणोंकी खोज-बीन हम बादमें करेंगे।

अभी तो मैं केवल इतना ही बताना चाहता हूँ कि विद्यापीठने अपने प्रस्तावसे कोई नया निर्णय नहीं किया है। विद्यापीठ अगर इससे भिन्न कोई प्रस्ताव पास करता तो वह अवश्य एक नई बात होती। सरकारी स्कूलोंमें आज अन्त्यज शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बम्बईके असंख्य हाई स्कूलोंमें ऐसे विद्यार्थी हैं, गुजरातके हाई स्कूलोंमें भी हैं।

यदि हम अबतक इन पाठशालाओंमें वैष्णव लड़कोंको भेजते रहे हैं तो फिर क्या हम राष्ट्रीय शालामें अन्त्यजोंका बहिष्कार करके एक नया टंटा शुरू करेंगे? क्या हम अस्पृश्यताका पुनरुद्धार करके स्वराज्य प्राप्त करने की आशा रखते हैं?

रेलगाड़ी, होटलों, अदालतों और मिलोंमें अस्पृश्यता आड़े नहीं आती, तो फिर.स्कूलोंमें जहाँ शिक्षककी देखरेखमें स्वच्छताके नियमोंका पालन करते हुए ही शिक्षा प्राप्त की जा सकती है वहाँ क्या अस्पृश्यताको कायम रखना चाहिए?

मुसलमानों, पारसियों, ईसाइयों और यहूदियोंको हम अस्पृश्य नहीं मानते; यदि मानें तो फिर हम उन्हें भाई नहीं बना सकते। ऐसी परिस्थिति में अन्त्यजको, जो हिन्दू धर्मका ही एक अंग है, राष्ट्रीय स्कूलोंमें, जहाँ इतर जातिके लोग आ सकते हैं, क्यों अस्पृश्य माना जाये?

मुझपर यह आरोप लगाया गया है कि विद्यापीठसे उपर्युक्त प्रस्ताव पास करवाकर मैंने हिन्दू-संसारपर सरकारके समान ही जुल्म ढाया है। ऐसा आरोप लगानेवाले व्यक्तियोंको विनम्रतापूर्वक याद दिलाना चाहता हूँ कि जिस ढंगसे आप स्कूल चलाना चाहते हैं, मैं उससे आपको रोकना नहीं चाहता; किन्तु आप भी मुझे न रोकें। इसमें

  1. उन्हीं दिनों राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूपमें स्थापित गुजरात विद्यापीठकी सीनेटकी सभामें ३१ अक्तूबर, १९२० को गांधीजीकी अध्यक्षतामें यह निश्चय किया गया था कि विद्यापीठ द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी स्कूलमें तथाकथित अन्त्यजोंका बहिष्कार नहीं किया जायेगा।