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प्रान्तोंका पुनर्गठन : कांग्रेसका नया संविधान


इस योजनाको लागू करनेमें मुश्किल चरखोंकी है। यदि यह कला लोकप्रिय हो जाती है तो हमें हजारों चरखोंकी जरूरत होगी। सौभाग्यसे गाँवका हर बढ़ई इस यन्त्रको आसानीसे बना सकता है। आश्रमसे[१] या किसी भी दूसरी जगहसे चरखे मँगाना बड़ी भारी भूल है। कताईकी खूबी यह है कि वह जरा भी मुश्किल नहीं है, इसे आसानीसे सीखा जा सकता है और बहुत सस्तेमें इसे गाँव-गाँव सिखाया जा सकता है।

यह पाठयक्रम सिर्फ इस शुद्धीकरण और तैयारीके एक सालके ही लिए है। जब हम साधारण हालतमें पहुँच जायेंगे और स्वराज्य कायम हो जायेगा तो कताईके लिए सिर्फ एक घण्टा, और बाकी समय किताबी पढ़ाईके लिए रखा जा सकता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २–२–१९२१

 

१५६. प्रान्तोंका पुनर्गठन : कांग्रेसका नया संविधान

आशा है कि नये संविधानके[२] अनुसार विभिन्न प्रान्तोंने अपनेको पुनर्गठित करनेका काम शुरू कर दिया है। अगर हम एक सालके अन्दर स्वराज्य हासिल करना चाहते हैं तो हमें एक मिनटका समय भी नहीं खोना चाहिए। नीचे वे नियम[३] दिये जा रहे हैं जिनके अनुसार गुजरात प्रान्त नये आधारपर अपना पुनर्गठन कर रहा है। उनको सबके मार्गदर्शनके लिए छापा जा रहा है। इन नियमोंसे पता चलता है कि प्रतिनिधि भेजने और प्रान्तीय कांग्रेस समितियोंके सदस्योंका चुनाव करनेके लिए ताल्लुकोंको मानना ज्यादा सुविधाजनक है। प्रान्तीय समितिकी सदस्य-संख्या सौ रखी गई है, जिनमें से ९० तो सीधे चुने जायेंगे और फिर ये चुने हुए सदस्य दस या कुछ ज्यादा सदस्योंका चुनाव करेंगे, जो अल्पसंख्यकों और अन्य हितोंका प्रतिनिधित्व करेंगे। उद्देश्य यह है कि यदि साधारण सभाके निर्वाचक किसी कारणसे अल्पसंख्यकों और दूसरे हितोंके प्रतिनिधित्वका खयाल चूक गये हों तो भी इस तरह प्रान्तीय सभामें उनका प्रतिनिधित्व निश्चित हो जाता है। कोई गांव ऐसा नहीं रहना चाहिए जहाँ कांग्रेसका संगठन न हो; और गाँवके हर बालिग मर्द या औरतका नाम वहाँके सदस्यता- रजिस्टरमें दर्ज होना ही चाहिए।[४] इसके लिए ईमानदार और मेहनती कार्यकर्त्ता चाहिए। जब लाखों-करोड़ों लोग स्वेच्छासे कांग्रेसमें शरीक हो जायेंगे तो सरकारका जबरदस्ती लादा गया संगठन भी बिखर जायेगा। मैं सरकारी संगठनको इसलिए जबरदस्ती लादा हुआ मानता हूँ कि उसका आधार प्रेम और आशा नहीं, भय है। गाँवका पटेल या मुखिया गाँववालोंकी

  1. साबरमती आश्रम।
  2. देखिए "नागपुर अधिवेशनमें पास किया गया कांग्रेसका संविधान", दिसम्बर १९२० ।
  3. यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।
  4. यहाँ मूल अंग्रेजी वाक्यमें तीन ऐसे शब्द आये हैं जिनकी जरूरत नहीं है और जिनसे अर्थविपर्यष भी हो जाता है।