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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इच्छाके अनुसार काम नहीं करता, वह एक ऐसी सरकारकी मर्जी उनपर लादता है, जिसका जनताकी भावनाओं और आकांक्षाओंसे कोई भी सम्बन्ध नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २–२–१९२१
 

१५७. पत्र : एक मित्रको[१]

१४८, रसा रोड, कलकत्ता
२ फरवरी, १९२१

प्रिय मित्र,

मैंने सुना है कि आपके पड़ोसियोंने असहयोग आन्दोलनमें पर्याप्त रूपसे अपना योग नहीं दिया और इस कारण आपने भूख हड़ताल कर दी है। यद्यपि आपके कार्यसे आपके हृदयकी शुद्धता और त्यागकी भावना प्रकट होती है, फिर भी मेरी रायमें आपका यह कार्य जल्दबाजीसे भरा हुआ और कदाचित् अविचारपूर्ण भी है। अपनी नाराजगी या निराशा व्यक्त करनेके लिए उपवासको उचित नहीं ठहराया जा सकता। इसका आधार प्रायश्चित्त अथवा शुद्धीकरण होना चाहिए। इसलिए मैं आपसे उपवास बन्द कर देनेका आग्रह करता हूँ। देशके जिन भागोंमें लोग आपको जानते हैं आप वहाँ उनका संगठन करनेमें लग जायें। आपके उपवासके पीछे लोगोंको अपने विचारके अनुकूल बनानेके उद्देश्यसे दबाव डालनेका जो भाव छिपा हुआ है वह उचित नहीं है। हमें हरएक व्यक्तिको कार्यकी और भाषणकी वैसी स्वतन्त्रता देनी चाहिए जैसी हम अपने लिए चाहते हैं।

आपका विश्वस्त,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई
 
  1. उक्त मित्रका नाम ज्ञात नहीं हो सका।