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१५८. भाषण : कलकत्तामें राष्ट्रीय महाविद्यालयके उद्घाटनपर[१]

४ फरवरी, १९२१

मित्रो,

आपने अभी यहाँ छात्रों द्वारा गाई हुई सुन्दर प्रार्थना[२] सुनी। मुझे आशा है कि आप सब इस प्रार्थनाकी भव्य भाषापर मनन करेंगे।[३] यदि इस संस्थामें हमारे सब कार्य प्रार्थनापर आधारित रहें तो हम सब निःसन्देह सफल होंगे और हम तथा हमारा देश अधिकाधिक यशका भागी होगा। पिछले कुछ महीनोंमें मुझे भारतके कई भागोंमें कई संस्थाओंका उद्घाटन करनेका शुभ अवसर मिला है। लेकिन मैं आपके सम्मुख यह बात स्वीकार करना चाहता हूँ कि किसी भी संस्थाका उद्घाटन करते हुए मैंने मनपर चिन्ता और आशंकाके ऐसे बोझका अनुभव नहीं किया जैसा इस समय कर रहा हूँ। मैंने एक जगह कहा था कि सभी लोगोंकी तथा छात्रजगत्की दृष्टि कलकत्तापर लगी हुई है। आपने अखबारोंमें छपे तमाम तार देखे हैं, और मैंने भी ऐसे अनेक तार देखे हैं जो अखबारोंमें नहीं छपे हैं। इन सभी तारोंमें देशके आह्वानका ऐसा शानदार उत्तर देनेपर छात्रोंको बधाई दी गई है। आपने यह भी देखा होगा कि आपके इस उत्तरके परिणामस्वरूप समस्त भारतके छात्र सरकारी संस्थाओंको छोड़ रहे हैं। इसलिए आपकी इस संस्थाके उपाध्यायों और अध्यापकोंकी, श्री दासकी और मेरी जिम्मेदारी भी बहुत बढ़ी है। अपने सम्बन्धमें मैं आपको यह विश्वास दिला सकता हूँ कि आप इस संस्थाको सफल बनानेके लिए जो कुछ करेंगे उसमें मेरी शुभ कामना आपके साथ होगी। लेकिन मैं जानता हूँ कि जबतक छात्र अपना कार्य नम्रतापूर्वक, मनमें ईश्वरका भय रखकर, धैर्यके साथ पूरे मनसे और देशके प्रति——जिसके नामपर तथा जिसके निमित्त उन्होंने सरकारी संस्थाएँ त्याग दी हैं——प्रेम और श्रद्धा रखते हुए नहीं करेंगे तबतक मेरी कोई भी शुभ कामना या शुद्ध हृदयोंसे निकल सकनेवाली कोई भी प्रार्थना कदापि उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकती। जो छात्र ऊँची डिग्री या अपनी कल्पनाके अनुसार कोई

  1. यह कालेज विलिंग्डन स्क्वेयर के एक विशाल भवनमें चित्तरंजन दास, जितेन्द्रलाल बनर्जी तथा अन्य व्यक्तियोंसे बने हुए शिक्षा-मण्डल द्वारा स्थापित किया गया था।
  2. गीताका एक श्लोक जो उद्घाटन समारोहके आरम्भमें गाया गया था।
  3. ५–२–१९२१ की अमृतबाजार पत्रिकामें इस खबरके आरम्भमें ये शब्द और दिये गये थे : "श्री गांधीने कालेजका उद्घाटन करते हुए कहा, मुझे अपने मित्र और भाई चित्तरंजनदासके उपस्थित न होनेका बहुत दुःख है। उनकी तबीयत इतनी खराब है कि वे सभामें नहीं आ सकते, यद्यपि वे उद्घाटनके अवसरपर आना चाहते थे। श्री जितेन्द्रलाल बनर्जीने आपको बताया है कि वे इस संस्थासे क्या अपेक्षा रखते हैं। छात्रोंने जो सुन्दर प्रार्थना अभी गाई है वह आपने सुनी और मैं आशा करता हूँ कि आप सभी उस प्रार्थनाके सुन्दर स्वरूपपर विचार करेंगे।"