पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/३५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बड़ा धन्धा अपनानेकी आकाँक्षा रखता है, यह [सरकारी संस्थाको छोड़ देना] उसके लिए कोई छोटा-मोटा काम नहीं है। ऐसी आकाँक्षा रखनेवाले छात्रके लिए यह सोचकर कि वह देशकी सेवा कर रहा है और इसलिए अपनी ही सेवा कर रहा है, उस आशा या आकांक्षा का त्याग करना आसान काम नहीं है। तथापि मुझे तो इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि आपको इन सरकारी संस्थाओंके छोड़नेपर कभी पछताना पड़ेगा। लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि यदि आप अपने समयका अच्छा उपयोग नहीं करेंगे, यदि आपने क्षणिक आवेशमें आकर इन संस्थाओंको छोड़ा है——हमारे देशका हित चाहनेवाले कई नेताओंने यह आशंका प्रकट की है——तो आजका दिन आपके लिए अवश्य ही पश्चात्तापका कारण सिद्ध होगा। मुझे आशा करनी चाहिए कि आप उक्त आशंकाको झूठा सिद्ध कर देंगे।

आप अपने कर्त्तव्यका पालन इस तरह करेंगे कि जिन लोगोंके मनमें आज आशंका है वे सालके अन्ततक अपने सन्देहोंको निराधार घोषित कर देंगे। मैं कलकत्ताके आप सभी छात्रोंसे, यह बात छिपाना नहीं चाहता कि भारतके दूसरे भागोंके भारतीयोंने आपके विषयमें क्या-कुछ कहा है। बहुतसे छात्रोंने, और अनेक प्रौढ़ लोगोंने भी, जिन्होंने मुझसे आपके आन्दोलनके सम्बन्धमें बातचीत की है, एक प्रकारकी घबराहट और भयका भाव प्रकट किया है। आपके बारेमें यह कहा जाता है कि आप लोग बहुत अधिक भावुक हैं, आपमें मानसिक आवेश भी बहुत है, और उद्योग और अध्यवसायके लिए आपकी ख्याति इतनी नहीं है।

आप एक नया मोड़ ग्रहण कर रहे हैं। आप अपने जीवनमें एक नये अध्यायका श्रीगणेश कर रहे हैं। आप अपने कंधेपर एक भारी जिम्मेदारी उठा रहे हैं। आप अपनी गणना भारतको भावी राष्ट्रनिर्माताओंमें कर रहे हैं। और यदि आप इस जिम्मेदारीको अनुभव करें तो मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारतके दूसरे भागोंमें आपके बारेमें जो कुछ कहा जा रहा है, आप उस सबको निर्मूल सिद्ध कर देंगे। जो लोग बंगालको अच्छी तरह जानते हैं वे यह भी प्रमाणित कर सकते हैं कि बंगालियोंने अनेक अवसरोंपर अपने कर्त्तव्यका पालन करके दिखाया है; और कमसे-कम मैं तो इसे बिलकुल नहीं मानता कि जिन छात्रोंने सरकारी संस्थाएँ छोड़ी हैं और जो इस संस्थामें प्रविष्ट होंगे वे अपना कर्त्तव्य पालन करनेमें कच्चे उतरेंगे। मैं यह भी आशा करूँगा कि उपाध्यायों और अध्यापकोंपर जो विश्वास किया गया है वे उसे सत्य सिद्ध करेंगे। मैं अत्यन्त विनम्रतापूर्वक उपाध्यायों और अध्यापकोंके सम्मुख वही बात कहना चाहता हूँ जो मैंने गुजरात राष्ट्रीय महाविद्यालयके[१] उद्घाटनकी रस्म पूरी करते हुए कही थी। बात यह है कि किसी भी संस्थाकी सफलता और असफलता बहुत कुछ उपाध्यायों और अध्यापकोंके सच्चे हृदयसे किये गये प्रयत्नोंपर निर्भर है। हमारे देशके इतिहासमें यह अवसर बहुत ही संकटका अवसर है और इस अवसरपर जो व्यक्ति देशमें नवयुवकोंके मानसका निर्माण करना चाहते हैं उनपर एक गम्भीर उत्तरदायित्व आ पड़ा है। यदि उपाध्याय

  1. १५ नवम्बर, १९२० को अहमदाबादमें; देखिए खण्ड १८, पृष्ठ ४८४-८९ ।