पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/३५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२७
भाषण : कलकत्तामें राष्ट्रीय महाविद्यालयके उद्घाटनपर

और अध्यापक असावधान पाये जाते हैं, यदि उनके मनमें सन्देह घर किये हुए है, यदि उनके मनमें भविष्यके सम्बन्धमें भयका भाव समाया हुआ है तो उनकी देख-रेखमें पढ़नेवाले छात्रका ईश्वर ही मालिक है। सर्वशक्तिमान प्रभुसे मेरी प्रार्थना है कि वह हमारे उपाध्यायों और अध्यापकोंको बुद्धिमत्ता, साहस, निष्ठा और आशा प्रदान करे।

मैंने अपने किसी एक भाषणमें छात्रोंसे कहा है कि उन्हें अपने मनके पाठ्यक्रमको हाथमें लेनेका अधिकार अवश्य है किन्तु उनका दूसरे छात्रोंके मार्गमें बाधा डालना उचित नहीं है। कदाचित् आपने आजके अखबारमें बारीसालके सम्बन्धमें प्रकाशित विवरण पढ़ा होगा। वहाँ जो- कुछ हुआ है उसका यह विवरण अतिशयोक्तिपूर्ण है या नहीं सो मैं नहीं जानता। उस घटनाकी बात चाहे बढ़ाकर कही गई हो चाहे घटा कर, मैं इसकी परवाह नहीं करता; फिर भी इससे आपको और मुझे एक शिक्षा यह मिलती है कि हिंसाका आश्रय किसी भी अवस्थामें नहीं लिया जाना चाहिए, हमें किसी भी कारण किसीपर बेजा दवाव नहीं डालना चाहिए और जैसा कि मैंने पिछली एक सभामें कहा था, मुझे आशा है कि छात्रगण धरना नहीं देंगे। वे स्कूल और कालेज न छोड़ने- वाले छात्रोंपर जरा भी दबाव नहीं डालेंगे। इतना काफी है कि जो इन संस्थाओं में रहना पाप समझते हैं वे इनसे निकल जायें। यदि हमें अपने ऊपर पर्याप्त विश्वास है तो चाहे एक भी छात्र इस आह्वानका उत्तर न दे, हम फिर भी दृढ़ बने रहेंगे। आपके अधीर हो जानेसे यह प्रकट होता है कि अपने पुनीत कार्यपर आपको विश्वास नहीं है। हम अधीर होकर, हमने जो कुछ किया है, दूसरोंको भी वैसा ही करनेके लिए बाध्य करने लगते हैं। मैं समझता हूँ कि इस संस्थाके किसी भी छात्रको अपने कार्यके सही होनेके बारेमें कोई सन्देह नहीं है।

मैं जब एक महीनेके बाद आपसे फिर मिलूँगा, मुझे उम्मीद है कि मैं जरूर यहाँ आऊँगा, तब मैं आपसे यह आशा रखता हूँ कि आप मुझे अंग्रेजीमें भाषण देनेके लिए नहीं कहेंगे; बल्कि तबतक आप मेरा भाषण समझने लायक हिन्दुस्तानी सीख लेंगे। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जब आप हिन्दुस्तानी पढ़ना आरम्भ करेंगे तब आपमें से कुछको वह बहुत सरल और सुगम मालूम होगी। आपमें से कुछको उसके शब्द बिलकुल स्वाभाविक लगेंगे, क्योंकि बँगला, हिन्दी और भारतकी अधिकांश भाषाओंकी शब्दावली एक है। केवल द्रविड़ देशकी भाषाएँ अपवाद हैं। आप यह भी देखेंगे कि इससे आपको मानसिक खुराक मिलेगी और इससे पढ़े-लिखे बंगालियोंकी बौद्धिक आवश्यकताएँ पूरी होंगी। यदि आप साहित्य पढ़ना चाहेंगे तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हिन्दी और उर्दू दोनोंमें से जिस लिपिको आप सीखेंगे और पहले-पहल जिन किताबोंको आप पढ़ेंगे उन्हींमें आपको ज्ञानका छुपा हुआ भंडार मिलेगा। आप हिन्दी भाषाकी साहित्यिक दरिद्रताकी बात कहते हैं——आप वर्तमान हिन्दीकी गरीबीकी बात कहते हैं; किन्तु यदि आप तुलसीदासकी 'रामायण' को गहराईसे पढ़ें तो शायद आप मेरी इस रायसे सहमत होंगे कि संसारकी आधुनिक भाषाओंके साहित्यमें उसके मुकाबिलेमें कोई दूसरी किताब नहीं ठहरती। उस एक ही ग्रन्थने मुझे जितनी श्रद्धा और आशा दी है उतनी किसी