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१५९. तार : जयरामदास दौलतरामको

झरिया
५ फरवरी, १९२१

दो महीनेतक सिन्ध आना असम्भव दीखता हैं।[१] कालेज जबतक राष्ट्रीय रहे हमें हस्तक्षेप करनेकी जरूरत नहीं। गिरधारीको[२] काम पसन्द हो तो वहाँ ठहर सकता है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एन्स्टैक्ट्स, १९२१, पृष्ठ १७६

 

१६०. पत्र : देवदास गांधीको

शनिवार [५ फरवरी, १९२१][३]

चि॰ देवदास,

तुम्हारा पत्र मिला। मुझे सोनेतक को समय मिलता नहीं, फिर तुम्हें पत्र कैसे लिख पाता?

मुझे लगता है कि फिलहाल तुम्हारा वहीं रहना ठीक होगा। बाको भी अच्छा लगेगा। तुम आश्रमकी कुछ समस्याएँ तो हल कर ही सकोगे। मैं यह भी चाहता हूँ कि तुम वहाँ कुछ अनुभव प्राप्त करो और धुनाई और कताईमें कुशल हो जाओ। मेरे पास इन दिनों जमनादास, डाक्टर और प्रभुदास हैं। सुरेन्द्र आज आ जायेगा। उसका रंगूनसे चला आना मेरी समझमें नहीं आया। प्रभुदासकी उससे कल पटनामें मुलाकात हुई थी। अभी दो व्यक्ति और आनेवाले हैं; परसराम और एक बंगाली सज्जन। इन्हें प्रोफेसर[४] मेरे हवाले करना चाहते हैं। उनकी समझमें वह व्यक्ति 'यंग इंडिया' के कामके लायक है। इतने सारे लोगोंमें तुम्हारा पता भी नहीं चलेगा और मैं परेशानीमें पड़ जाऊँगा। मैं इस संख्यामें कुछ कमी करनेकी बात सोच रहा हूँ। मेरा खयाल है, तुम वहाँ अनायास ही पहुँच गये हो और इसमें भलाई ही है। तुम्हारी जगहको

  1. गांधीजी १९२१ में अप्रैलके अन्तिम सप्ताहमें सिन्ध गये थे।
  2. आचार्य जे॰ बी॰ कृपलानीका भतीजा।
  3. अन्तिम अनुच्छेदमें कहा गया है कि गांधीजीने यह पत्र बिहार जाते समय रेलमें लिखा था। १९२१ में बंगालका दौरा समाप्त कर चुकनेपर गांधीजी ५ फरवरीको धनबाद, बिहार पहुँचे थे। उस दिन शनिवार था। बिहार राष्ट्रीय विश्वविद्यालयके उद्घाटनके लिए वे ६ फरवरीको पटना पहुँचे थे।
  4. आचार्य जीवतराम बी॰ कृपलानी (१८८६- ); शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ; १९४६ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष।