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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

या तो तुम ही भर सकते हो या फिर किसी भी व्यक्तिसे काम चल जायेगा। कोई किसीकी जगह नहीं भर सकता और अनिवार्य भी कोई नहीं है। मैंने तो यही तरीका अपनाया है। तटस्थताका अभ्यास करते रहना चाहिए।

मिसेज जोजेफ[१] फिलहाल तो प्रयागजी ही जायेंगी। और यह ठीक भी है। लगता है जोजेफ फिलहाल तो गिरफ्तार नहीं होता। मिसेज जोजेफकी वापसीमें क्या तुम्हें उनके साथ रहना पड़ेगा?

मैं चाहता हूँ कि तुम आश्रमके सारे काम सीख-समझ लो। मैं तुम्हें आज एक तार भी करूँगा। मैं यह पत्र बिहार जाते हुए रेलमें लिख रहा हूँ। डाक्टर और प्रभुदासको गयामें छोड़ आया हूँ। वहाँसे ये लोग पटना जायेंगे। हम लोग कल सवेरे फिर मिल जायेंगे।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ७६०५) से।

१६१. चरखेका आन्दोलन

चरखेका आन्दोलन ठीक चल रहा जान पड़ता है। देखता हूँ चरखेकी माँग अनेक जगहोंसे आ रही है। लेकिन यदि सभी लोग किसी एक ही स्थानके बने हुए चरखे माँगेंगे तो हमारी प्रगतिमें रुकावट आ जायेगी।

इस कामका फल जितना अच्छा है यह उतना ही आसान भी है। इसकी सफलता उसके आसान होनेमें ही निहित है। चरखा एक ऐसी सामान्य वस्तु है कि वह प्रत्येक गाँवमें बन सकता है। उसका हरेक हिस्सा, जिस गाँवमें लुहार अथवा बढ़ई है, उसमें बन सकता है। हिन्दुस्तानमें तीस करोड़की आबादी है, इसलिए यदि हम एक घरमें दस लोग गिनें तो तीन करोड़ घर हुए। जब हिन्दुस्तानमें तीन करोड़ चरखे चलने लगेंगे स्वराज्यवादियोंको तभी शान्ति मिलेगी। किन्तु यदि इतने चरखे एक ही स्थानपर तैयार करने पड़े तो काम रुक जायेगा।

हिन्दुस्तानमें ७,५०,००० गाँव हैं। इसलिए इस प्रवृत्तिमें इतने गाँवोंको हिस्सेदार बनाना चाहिए। ये गाँव २५० जिलोंमें बँटे हुए हैं। इसलिए यदि प्रत्येक जिलेमें एक व्यक्ति इस कार्यको करनेके लिए निकल पड़े तो यह प्रवृत्ति व्यापक रूप ग्रहण कर सकती है; और प्रत्येक जिलेकी चरख सम्बन्धी आवश्यकता उक्त जिलेका कार्यकर्ता पूरी करे अथवा उसके सम्बन्धमें मार्गदर्शन करे; काम तभी आगे बढ़ सकता है।

चरखेसे सम्बन्धित जितनी भी माँगें की जाती हैं वे सिर्फ आश्रमसे ही की जाती हैं। इससे पता चलता है कि हम अभी अपने कारीगरोंतक नहीं पहुँचे हैं। हमें प्रत्येक गाँवकी अठारहों जातियोंमें से प्रत्येककी रुचि स्वराज्यके काममें पैदा करनी है।

  1. मदुराके वैरिस्टर श्री जॉर्ज जोनेफकी धर्मपत्नी।