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चरखेका आन्दोलन

अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग ही स्वराज्य-आन्दोलनको चला सकते हैं, हम जैसे अपने इस सनक-भरे विचारसे मुक्ति पाते जा रहे हैं वैसे ही हमें इस बातको भी भूल जाना होगा कि यह आन्दोलन सिर्फ राजनीतिज्ञ ही उचित रूपसे चला सकते हैं।

स्वराज्यकी शिक्षा, हमारी प्राथमिक शिक्षा है। यह शिक्षा बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष, सब वर्णोंके और सब धर्मोके लोगोंको दी जानी है। उसके लिए अक्षर-ज्ञानकी जरूरत नहीं है। हमें इस राक्षसी राज्यका नाश करना है। इस राज्यसे हमारा कल्याण नहीं होगा। इसका नाश करनेका साधन अहिंसात्मक असहयोग है। असहयोगका अर्थ है हम सबमें सहयोग। हममें सहयोगका मतलब हुआ, हममें स्वतन्त्र होनेकी इच्छा और शक्ति। इस इच्छाको सफल बनानेकी शक्तिको प्राप्त करनेका सबसे बड़ा साधन चरखा है। इतना ज्ञान सब लोगोंको थोड़ेसे समयमें ही दिया जा सकता है।

अतएव हमें अपने बढ़ई, लुहार, मोची और किसान आदि वर्गोंको इस कार्यमें लगाना चाहिए। स्वामीनारायण मन्दिरका[१] निर्माण कारीगरोंने मजदूरी लिए बिना ही किया है। धनवानोंने उसके लिए धन दिया है। फिर स्वराज्यके भक्त स्वराज्यके मन्दिरका निर्माण पारिश्रमिक लिये बिना क्यों न करें? मजदूर अपनी मजदूरी दें और धनी अपना धन। ऐसी भावना उत्पन्न करनेके लिए थोड़ेसे ही लोगोंकी जरूरत है; लेकिन ये लोग होने चाहिए सच्चे सेवक।

फिलहाल तो चरखेकी सारी प्रवृत्ति अपंगवर्गमें ही चल रही है। मुझे तो ऐसा लगता है कि हम शिक्षित वर्गके लोग सच्चा स्वराज्य प्राप्त करनेमें अपंग हो गये हैं। हमें पता चल गया है कि स्वराज्य बातोंसे, भाषणोंसे, आवेदनोंसे और विलायत जानेवाले शिष्टमण्डलोंसे नहीं मिलेगा। स्वराज्य तो स्वधर्म है; और अब हम ऐसा मानने लगे हैं कि स्वराज्य वीरता और यज्ञसे ही मिलेगा। हमें इस मान्यताको व्यापक बनाना है और यह जिस दिन व्यापक हो जायेगी उसी दिन स्वराज्य मिल जायेगा। अगर हम इस कामको करें तो यह एक वर्षमें हो सकता है। इसीसे मैं बार-बार कहता हूँ कि एक वर्षमें स्वराज्य मिलना सम्भव है।

लेकिन इस लेखका विषय तो चरखा है। स्वराज्य प्राप्त करनेका अर्थ है प्रत्येक घरमें चरखा दाखिल करना और सूत कतवाना।

मुझसे चरख मँगवानेके बजाय सब लोगोंको चरखे अपने-अपने गाँवोंमें ही बनवा लेने चाहिए।

हम डरते हैं, हम अनभिज्ञ हैं, इसीसे चरखेकी तलाश करनेमें इतना समय चला जाता है। हिन्दुस्तानके कोने-कोनेमें, सब प्रान्तोंमें कहीं-न-कहीं चरखा मिलेगा। हरएक मनुष्यको अपने गाँवोंमें और मुहल्लेमें उसकी तलाश कर लेनी चाहिए। चरखा मिल जाये तो बढ़ई खोज लेना चाहिए। कदाचित् उसे इस सम्बन्धमें ज्ञान होगा। यदि चरखा न मिले तो कहीं और से एक नमूना मँगवाकर वैसे ही अन्य चरखे बनवा लेने चाहिए।

 
  1. वडतालमें।