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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लेकिन चरखेका अर्थ सिर्फ सूत कातना ही नहीं है। वह तो इस दिशामें पहला कदम है। रुईकी पूनियोंकी आवश्यकता पड़ेगी, इसके लिए रुई पींजनेवालेको ढूँढना पड़ेगा, उससे विनती करनी पड़ेगी। उसे भी स्वराज्यका पाठ पढ़ाना पड़ेगा।

उपर्युक्त विचारोंको मैंने समय-समयपर व्यक्त किया है। फिर भी भिन्न शब्दोंमें या उन्हीं शब्दोंमें उन्हें बार-बार कहते रहना——दुहराना पड़ता है, क्योंकि अभी हममें कार्यशक्ति और कार्यकुशलता नहीं आई है।

जितनी चरखेकी माँग होती है उतनी ही खादीकी भी होती है। यदि अच्छा सूत मिल जाये तो सारे हिन्दुस्तानको ढाँकने योग्य खादी तैयार हो सकेगी।

सूत असली होना चाहिए। रुईमें से चाहे जैसे निकाले गये तारको सूत नहीं कहा जा सकता। सूत वह है जो बुना जा सके। उसे बटदार और एक-सा होना चाहिए और उसमें रुईकी गाँठें या किरी नहीं होनी चाहिए।

गुजरातमें इस हदतक चरखेका प्रसार हो गया है कि यदि उसके प्रति लोगोंके हृदयोंमें तनिक और श्रद्धा भाव आ जाये तो गुजरातमें ही एक वर्षमें करोड़ रुपयेकी खादी बुनी जा सकती है। इसका अर्थ यह है कि गुजरातके गरीब घरोंमें एक करोड़ रुपया आ जायेगा और फिर भी उससे पाखंड नहीं बढ़ेगा; क्योंकि जब गरीबोंको पेटमें अन्न डालनेके लिए पैसा दिया जाता है तब उसका फल शुभ ही होता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ६–२–१९२१

 

१६२. सनातनी हिन्दू कौन है?

मुझसे पूछा गया है कि मैं अपने आपको कट्टर सनातनी हिन्दू क्यों कहता हूँ, अपने-आपको वैष्णव कैसे मानता हूँ। मुझे इन प्रश्नोंका उत्तर देना आवश्यक लगता है।

इसका उत्तर देनेसे सनातनी हिन्दूकी व्याख्या और वैष्णवकी पहचान स्पष्ट हो जायेगी।

मेरी मान्यता है कि जो व्यक्ति हिन्दुस्तानमें, हिन्दू-कुलमें जन्म लेकर वेद, उपनिषद्, पुराण आदि ग्रन्थोंको धर्म-रूप मानता है, जो व्यक्ति, सत्य-अहिंसा आदि पाँच यमोंमें श्रद्धा रखता है और यथाशक्ति उनका पालन करता है; जो व्यक्ति यह मानता है कि आत्मा है, परमात्मा है, आत्मा अजर और अमर होनेपर भी देह-क्रमसे संसारमें अनेक योनियोंमें आवागमन किया करता है, वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है और मोक्ष ही परम पुरुषार्थ है तथा जो वर्णाश्रम और गोरक्षाको धर्म मानता है वह हिन्दू है। जो व्यक्ति यह सब माननेके अलावा वैष्णव सम्प्रदायको माननेवाले परिवारमें जन्मा हो और जिसने उसका त्याग न किया हो, जिस व्यक्तिमें नरसिंह मेहताने अपने 'वैष्णव जन' नामक भजनमें जिन गुणोंका वर्णन किया है उनका थोड़ा बहुत अंश भी हो और जो उन गुणोंको पूरी तरह पानेका प्रयत्न कर रहा हो वह वैष्णव है। मेरी दृढ़ मान्यता है कि उपर्युक्त गुण मुझेमें बहुत अधिक अंशमें विद्यमान हैं और मैं उन्हें