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स्वराज्यकी शर्तें और अस्पृश्यता

जुल्म क्या है? सच तो यह है कि मुझे रोकनेका इरादा करके आप जुल्म करते हैं। जो व्यक्ति राष्ट्रीय भावनाको जागृत करने में अस्पृश्यताको हानिकारक मानता है आप उसे उसके विरुद्ध आन्दोलन करनेसे कैसे रोक सकते हैं? आप दूसरे आदर्शोंको माननेवाले तथा अस्पृश्यताके धर्मको स्वीकार करनेवाले अन्य विद्यापीठोंकी स्थापना करें, उससे आपको कोई नहीं रोकेगा। हाँ, उसके विफल होने की सम्भावनासे अगर आप वैसा न कर पायें तो यह अलग बात है।

मेरी दृढ़ मान्यता है कि अस्पृश्यता अधर्म है। यह हिन्दू धर्ममें निहित बुराइयोंकी परिसीमा है; इसका पोषण करना दुराग्रह है। उसे तपश्चर्या के द्वारा दूर करने में सत्याग्रह है। सत्यका आग्रह ही धर्म है। प्रत्येक रूढ़िगत दोषको पकड़े रहनेका आग्रह करना अधर्म है।

असहकार शुद्धि-शास्त्र है। आन्तरिक शुद्धि किये बिना असहकार असम्भव है। जबतक हम अपने ही एक अंगको अस्पृश्य मानेंगे तबतक स्वयं हम हिन्दू लोग और हमारे पड़ोसी मुसलमान आदि भी जो आज [साम्राज्यके] अछूत बन गये हैं, अछूत ही बने रहेंगे। मेरी दृढ़ मान्यता है कि हिन्दू-संसारकी अधोगति अस्पृश्यताके दोषसे ही हुई है। अपने पापसे हम खुद ही अस्पृश्य बन गये हैं। हमने धर्मके बहाने अन्त्यजोंको अस्पृश्य माना; सरकारने भी अपना धर्म समझकर हमें अस्पृश्य बना दिया। और विदेशियोंकी ओरसे दिये गये इस बिल्लेको हम भी अन्त्यजोंके समान ही स्वाभाविक मान कर अंगीकार किये हुए हैं। और जैसा हम कहते हैं कि अन्त्यज अपनी अस्पृश्यताको कलंक नहीं मानते, वैसे ही सरकार भी कहती है कि हम अपनी हीनावस्थाको स्वाभाविक बात मानते हैं। सिर्फ गांधी-जैसे कुछ विप्लवी लोग ही भारतीयोंको भरमाकर उनकी स्वाभाविक गतिको अधोगति कहते फिरते हैं।

गुजराती हिन्दुओंसे मेरी प्रार्थना है कि आप असहयोगमें बहुत ज्यादा भाग ले रहे हैं; उसे इस तरह खलबली मचाकर अवरुद्ध न करें। अस्पृश्यताको धर्म मानकर आप स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते। आप कहेंगे कि इससे तो हमें यह राक्षसी सरकार ही प्रिय है। इसका एकमात्र उत्तर यही है कि राक्षसी सरकारके राज्यमें जिन्हें आप अस्पृश्य मानते हैं उन्हें आप अस्पृश्य नहीं रख सकते; इतना ही नहीं वरन् वैसा प्रयत्न करनेसे हमारी आजकी दयनीय स्थिति और भी दयनीय हो जायेगी, यह बात सहज सिद्ध है। हमें इसे नहीं भूलना चाहिए।

[गुजराती से]

नवजीवन, २१-११-१९२०