पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनाई जायेगी। मैं चाहता हूँ कि आप जिस उद्देश्यके लिए काम कर रहे हैं उसकी महानताका अनुभव करें। मुझे यह जानकर प्रसन्नता होती है कि सब उपाध्याय और इन संस्थाओंसे सम्बन्धित अन्य लोग बिहारके खरे और उत्साही कार्यकर्ता हैं। बाबू ब्रजकिशोर और बाबू राजेन्द्रप्रसाद मेरे लिए भाईके समान हैं और मेरा उनका साथ चम्पारनमें उस समय[१] बहुत दिनोंतक रहा और हमने साथ-साथ मिलकर काम किया, जब वहाँ हमारे साथ आने और काम करनेके लिए बहुत कम लोग तैयार होते थे। मुझे विश्वास है कि उनके नेतृत्वमें हमारी संस्थाका काम बड़े जोशके साथ आगे बढ़ेगा, क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि वे ऐसे आदमी है जो इस कामके लिए प्रसन्नतापूर्वक अपने प्राण भी दे देंगे। मैं आप उपाध्यायोंसे यह कहना चाहता है कि आप अपनी प्राचीन महान संस्कृतिके अनुरूप और अपने पुराने ऋषियोंके आदर्शके अनुसार जीवन बितायें; यदि आपने ऐसा किया तो विश्वास रखें कि इस संस्थाकी बुनियाद डालना सचमुच स्वराज्यकी बुनियाद डालना ही है। छात्रोंको सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा; कालिदासने एक जगह कहा है, "नवदीक्षित शिष्य जितना ज्ञान ग्रहण कर सकता है, गुरु उसको उतना ही दे सकता है।" हमारे भीतर जितनी प्रतिभा होगी शिक्षाके द्वारा उसीका रूप व्यक्त किया जा सकेगा। गुरुका काम है कि वह छात्रकी उसके अन्दर विद्यमान प्रतिभाको विकसित करे और उसे प्रकाशमें लाये। आशा है कि इस महाविद्यालयके छात्र अपने गुरुजनोंसे इस तरह ज्ञान प्राप्त करेंगे और अपना जीवन इस तरह बितायेंगे कि यह संस्था देशके लिए आदर्श बन जाये।

पाण्डे जगन्नाथ प्रसादजीने हमारे सामने जो प्रार्थना पढ़कर सुनाई है उसमें मुझे हमारे कामकी कुंजी दिखाई पड़ी है——हम सत्यको प्राप्त करें, अन्धकारसे प्रकाशमें प्रवेश करें और मृत्यु-जैसी अवस्थासे जीवनमें प्रवेश करें। यह असहयोग है और हमारे द्वारा स्वराज्यकी प्राप्ति प्रकाशमें प्रवेशका लक्षण है। हम अपनी वर्तमान ढोंगी सरकारसे सहयोग करके उसके सम्पर्क-दोषसे स्वयं दूषित हो गए हैं और उसके अपराधमें साझेदार भी बन गये हैं। हमने अबतक इसलिए ऐसा किया है क्योंकि हम भी वैसे ही पापी हैं। किन्तु फिर भी हम ईश्वरमें विश्वास रखते हैं और उससे डरते हैं। अन्ततोगत्वा हमें यह प्रतीति हो गई कि यह सरकार गलत रास्तेपर है और इसकी शासन-प्रणाली दूषित है; इसलिए हम इस निर्णयपर पहुँचे हैं कि जबतक इसकी कायापलट नहीं हो जाती तबतक हम इससे सहयोग नहीं कर सकते। मैं न तो साम्राज्यसे और न उसके संचालकोंसे घृणा करता हूँ। मैं तो उसकी प्रणालीको नष्ट करनेपर तुला हुआ है। मेरे मनमें किसीके लिए भी घृणा नहीं है और इन लोगोंके लिए भी प्रेम-भावके सिवा मेरे मनमें कोई दूसरा भाव है ही नहीं। किन्तु यदि मेरे पिता या भाई भी ऐसा ही आचरण करते, जैसा सरकारने किया है, तो भी मैं यही अनुभव करता कि उनसे सम्बन्ध तोड़ देना मेरा कर्त्तव्य है। यदि कोई पुत्र अपने पापी पिताके साथ रहता है

  1. १९१७ में।